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A Form of Parvati: Goddess Shakambhari
In India’s agriculture-centric culture, food grains, vegetables, and other produce emerge from Mother Earth. Parvati, the daughter of the Himalayas, is considered a form of Mother Earth. Parvati marries Shiva, and her two primary forms are Goddess Annapurna and Goddess Shakambhari.
The divine power of the Supreme Being and its worship tradition have been prevalent since ancient times, dating back to the Vedic era. Worshipping and revering this power is natural, as humans also become worthy of worship through their unique strengths. In the Rigveda, the power of speech (Vani-Shakti) is considered the source of all gods.
In the Kena Upanishad, this goddess is identified as Hemavati Uma (Uma, the daughter of the Himalayas, or Parvati). She is the embodiment of Shiva's power. One form of Parvati is ‘Shakambhari.’ The same supreme goddess Mahadevi takes on different names and incarnations over time to bestow her grace on living beings and destroy evil. In her Shakambhari form, she destroys demons and, in times of drought, blesses the world with a bounty of vegetables as her grace.
May the blessings of Goddess Shakambhari always be upon us. We pray to the benevolent goddess.
Goddess Shakambhari: The Deity of Vegetation and Nourishment
During the cold month of Paush, consuming fresh vegetables and fruits is considered beneficial and health-enhancing. Vegetables and root crops serve as life-sustaining remedies. To convey this inspiring message, our ancient scriptures and sages introduced the celebration of Shakambhari Navratri during the month of Paush, dedicated to the worship of Goddess Shakambhari, the presiding deity of vegetables.
The Four Navratris Celebrated for Goddess Worship
Navratri is a grand festival honoring the primordial power (Adi Shakti). According to the Markandeya Purana and the story of Durga Saptashati, the supreme goddess emerged from the collective energy of the gods and defeated demons like Mahishasura. After destroying the demon named Durga, she became known as Durga or Navadurga. One form of Goddess Durga is Goddess Shakambhari.
India celebrates four Navratris:
1. Chaitra Navratri
2. Ashadha Navratri
3. Ashwin Navratri
4. Shakambhari Navratri
The first three begin on the first day of the waxing moon, while Shakambhari Navratri starts on the eighth day (Ashtami) of the waxing moon and culminates on the full moon (Purnima).
The Origins of Shakambhari Devi
The Durga Saptashati in the Markandeya Purana narrates how the gods, pleased with the goddess’s triumph over demons, praised her. The goddess foretold:
“In the future, during a drought on Earth, I will manifest in the form of Ayoniya (not born from a womb) in response to the prayers of sages. From my body, I will produce various vegetables, roots, fruits, and flowers to sustain living beings until rain returns. I will then be known as Shakambhari Devi.”
In the Devi Bhagavata Purana, another story explains that during a severe drought, the goddess took the form of Shakambhari to fulfill her promise to the gods. The demon Durga, a descendant of Hiranyakashipu, performed penance and obtained a boon from Brahma, allowing him to steal the Vedas from the Earth. As a result, the gods forgot the Vedas, and Durga attacked heaven. Seeking refuge on Mount Sumeru, the gods faced immense hardships, including famine. Finally, sages prayed, and the four-armed goddess manifested as Shatakshi (the one with a hundred eyes). She defeated Durga and, as Shakambhari, showered vegetables, fruits, and flowers on the Earth, saving humanity.
The Iconography of Shakambhari Devi
According to the Durga Saptashati, Shakambhari Devi is depicted with a blue-hued body, lotus-like eyes, and surrounded by a variety of vegetables. She is adorned with vibrant flowers, fruits, and roots and is known to quench hunger and thirst while destroying evil and suffering.
Shakambhari Navratri Rituals
Shakambhari Navratri is celebrated from Paush Shukla Ashtami to Purnima. Devotees install the goddess's idol along with a pot (kalash) and a yantra and perform morning and evening prayers, reciting devotional songs and offering fresh vegetables and fruits as naivedya. In some households, an eternal lamp (akhanda deep) is lit throughout the Navratri. The main mantra for worship is:
"Om Shakambhari Devyai Namah."
Shakambhari Purnima
Shakambhari Purnima, observed on the full moon of Paush, commemorates the goddess's manifestation. She blessed the Earth with vegetation during a time of severe drought, saving countless lives.
Prominent Temples of Shakambhari Devi
Some renowned Shaktipeeths of Shakambhari Devi include:
Sambhar district in Rajasthan
Saharanpur in Uttar Pradesh
Banashankari Amma Temple in Karnataka (near Badami and Bangalore)
Shakambhari Navratri is primarily celebrated in Uttar Pradesh, Rajasthan, Maharashtra, Karnataka, and Tamil Nadu.
The Divine Hymn of Shakambhari
Devotees believe that worshiping and meditating on Shakambhari Devi grants them eternal nourishment, fruits, and water. The opening verse of her hymn conveys reverence:
"Jagabhramavivartakakaran Parameshwari Namah Shakambhari Shivae Namaste Shatalochane"
Meaning: "O Supreme Goddess, you are the cause of the world’s illusion. O Shakambhari, O Shiva, O Shatalochane (one with a hundred eyes), we bow to you." This signifies that while the world may be an illusion, the ultimate truth lies in the divine power of the goddess.
पार्वती का एक रूप: देवी शाकंभरी
भारत की कृषि-केंद्रित संस्कृति में, अनाज, सब्जियाँ और अन्य उपज धरती माता से निकलती हैं। हिमालय की पुत्री पार्वती को धरती माता का एक रूप माना जाता है। पार्वती ने शिव से विवाह किया, और उनके दो प्राथमिक रूप देवी अन्नपूर्णा और देवी शाकंभरी हैं।
परमात्मा की दिव्य शक्ति और उसकी पूजा परंपरा प्राचीन काल से प्रचलित है, जो वैदिक युग से चली आ रही है। इस शक्ति की पूजा और आदर करना स्वाभाविक है, क्योंकि मनुष्य भी अपनी अनूठी शक्तियों के माध्यम से पूजा के योग्य बनते हैं। ऋग्वेद में, वाणी की शक्ति (वाणी-शक्ति) को सभी देवताओं का स्रोत माना जाता है।
केन उपनिषद में, इस देवी की पहचान हेमवती उमा (उमा, हिमालय की पुत्री, या पार्वती) के रूप में की गई है। वह शिव की शक्ति का अवतार हैं। पार्वती का एक रूप 'शाकंभरी' है। वही सर्वोच्च देवी महादेवी समय-समय पर जीवों पर अपनी कृपा बरसाने और बुराई को नष्ट करने के लिए अलग-अलग नाम और अवतार लेती हैं। अपने शाकंभरी रूप में, वह राक्षसों का नाश करती हैं और सूखे के समय, अपनी कृपा के रूप में दुनिया को भरपूर मात्रा में सब्जियां प्रदान करती हैं।
देवी शाकंभरी का आशीर्वाद हम सभी पर हमेशा बना रहे। हम दयालु देवी से प्रार्थना करते हैं।
देवी शाकंभरी: वनस्पतियों और पोषण की देवी
पौष महीने की ठंडी में ताजे हरे सब्ज़ियों और फलों का सेवन लाभकारी और स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। सब्ज़ियाँ और कंद-मूल जीवनदायी औषधियाँ हैं। इस प्रेरणादायक संदेश को प्रसारित करने के लिए हमारे प्राचीन शास्त्रों और ऋषि-मुनियों ने पौष माह में शाकंभरी नवरात्रि का आयोजन किया और वनस्पतियों की अधिष्ठात्री देवी शाकंभरी की उपासना प्रारंभ की।
देवी उपासना के लिए चार नवरात्रि
नवरात्रि आद्यशक्ति के महापर्व का प्रतीक है। मार्कण्डेय पुराण और दुर्गा सप्तशती की कथा के अनुसार, जब देवताओं की ऊर्जा से उत्पन्न महादेवी ने महिषासुर जैसे अनेक राक्षसों का संहार किया और दुर्गम नामक राक्षस को हराया, तब उन्हें दुर्गा या नवदुर्गा के नाम से जाना गया। देवी दुर्गा के अनेक स्वरूपों में से एक हैं देवी शाकंभरी।
भारत में चार नवरात्रियाँ मनाई जाती हैं:
1. चैत्र नवरात्रि
2. आषाढ़ नवरात्रि
3. आश्विन नवरात्रि
4. शाकंभरी नवरात्रि
पहली तीन नवरात्रियाँ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होती हैं, जबकि शाकंभरी नवरात्रि शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर पूर्णिमा को समाप्त होती है।
देवी शाकंभरी की उत्पत्ति
दुर्गा सप्तशती में वर्णन मिलता है कि जब देवी ने राक्षसों का संहार किया, तब प्रसन्न हुए देवताओं ने उनकी स्तुति की। देवी ने कहा:
"भविष्य में पृथ्वी पर जब दुर्भिक्ष उत्पन्न होगा, तब मैं ऋषि-मुनियों की प्रार्थना पर अयोनिजा (जो गर्भ से उत्पन्न न हो) रूप में प्रकट होकर अपने शरीर से विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ, कंद, फल और फूल उत्पन्न करूंगी। इससे जीव-जंतु तब तक जीवित रहेंगे जब तक वर्षा नहीं होती। उस समय मुझे शाकंभरी देवी के नाम से जाना जाएगा।"
देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि एक बार दुर्भिक्ष के कारण पृथ्वी पर भयानक अकाल पड़ा। तब देवी ने शाकंभरी रूप धारण कर अपना वचन पूरा किया। राक्षस दुर्गम, जो हिरण्यकशिपु के वंश का था, ने तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान प्राप्त किया और पृथ्वी से वेद चुरा लिए। देवता वेदों को भूल गए, और दुर्गम ने स्वर्ग पर आक्रमण कर दिया। देवता सुमेरु पर्वत पर शरण लेने को विवश हुए। इस अकाल में मानव और पशु भूख से मरने लगे। अंततः ऋषियों की प्रार्थना पर देवी चतुर्भुजा रूप में प्रकट हुईं और शताक्षी (सौ नेत्रों वाली) के रूप में दुर्गम का वध किया। इसके बाद उन्होंने शाकंभरी रूप धारण कर पृथ्वी पर सब्जियाँ, फल, और फूल उत्पन्न कर प्राणियों की रक्षा की।
देवी शाकंभरी का स्वरूप
दुर्गा सप्तशती में देवी शाकंभरी का वर्णन किया गया है। उनका रंग नीलवर्ण है, उनकी आँखें कमल जैसी हैं और वे विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियों से घिरी रहती हैं। वे भूख और प्यास मिटाकर मृत्यु के भय को समाप्त करती हैं। वे पुष्प, पल्लव, और कंद से युक्त हैं और दुर्जनों का दमन तथा विपत्तियों का नाश करती हैं।
शाकंभरी नवरात्रि के अनुष्ठान
शाकंभरी नवरात्रि पौष शुक्ल अष्टमी से पूर्णिमा तक मनाई जाती है। इस दौरान देवी की मूर्ति, कलश, और यंत्र की स्थापना कर पूजा की जाती है। भक्त सुबह-शाम भजन गाते हैं, देवी को फल और सब्ज़ियों का भोग अर्पित करते हैं, और दीप जलाते हैं। इस नवरात्रि की विशेषता यह है कि देवी को अर्पित भोग में मुख्य रूप से विभिन्न प्रकार की सब्ज़ियाँ और फल शामिल होते हैं।
देवी की पूजा के लिए प्रमुख मंत्र है:
"ॐ शाकंभरीदेव्यै नमः।"शाकंभरी पूर्णिमा
पौष पूर्णिमा को देवी शाकंभरी की प्रकट तिथि के रूप में मनाया जाता है। अकाल के समय उन्होंने पृथ्वी पर वनस्पतियों की वर्षा कर प्राणियों की रक्षा की थी। इसे "शाकंभरी पूर्णिमा" कहा जाता है।
प्रमुख शाकंभरी शक्ति पीठ
देवी के प्रसिद्ध मंदिर हैं:
राजस्थान के सांभर जिले में शाकंभरी देवी मंदिर।
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर के पास शाकंभरी पीठ।
कर्नाटक में बदामी और बेंगलुरु के पास बनशंकरी अम्मा मंदिर।
देवी शाकंभरी की स्तुति
जो व्यक्ति देवी शाकंभरी की पूजा करता है और उनकी स्तुति करता है, वह अन्न, फल, और जल जैसे अक्षय वरदान प्राप्त करता है। उनकी स्तुति के पहले श्लोक में कहा गया है:
"जगभ्रमविवर्तकारण परमेश्वरी नमः शाकंभरी शिवे नमस्ते शतलोचने।"
अर्थ: "हे परमेश्वरी! आप इस संसार के भ्रम का कारण हैं। हे शाकंभरी, हे शिवे, हे शताक्षी! आपको नमन।"
इसका भावार्थ यह है कि संसार माया स्वरूप है, लेकिन सत्य केवल देवी शक्ति ही है।