Read the two stories in English after the Hindi version
श्रीकृष्ण ने कहा है देवउठनी एकादशी की रात्रि जागरण कर पूजा करने से साधक की आने वाली 10 पीढ़ियां विष्णु लोक में स्थान प्राप्त करती है, पितृ नरक से मुक्ति पाते हैं. देवउठनी एकादशी का व्रत कथा के बिना अधूरा है.
देवउठनी एकादशी कथा
धर्म ग्रंथों के स्वंय श्रीकृष्ण ने इसका महाम्त्य बताया है, इसके अनुसार एक राज्य में एकादशी के दिन प्रजा से लेकर पशु तक कोई भी अन्न नहीं ग्रहण करता था. एक दिन भगवान विष्णु ने राजा की परीक्षा लेने की सोची और सुंदरी भेष बनाकर सड़क किनारे बैठ गए. राजा की भेंट जब सुंदरी से हुई तो उन्होंने उसके यहां बैठने का कारण पूछा. स्त्री ने बताया कि वह बेसहारा है. राजा उसके रूप पर मोहित हो गए और बोले कि तुम रानी बनकर मेरे साथ महल चलो.
श्रीहरि ने ली राजा की परीक्षा
सुंदर स्त्री के राजा के सामने शर्त रखी कि ये प्रस्ताव तभी स्वीकार करेगी जब उसे पूरे राज्य का अधिकार दिया जाएगा और वह जो बनाए राजा को खाना होगा. राजा ने शर्त मान ली. अगले दिन एकादशी पर सुंदरी ने बाजारों में बाकी दिनों की तरह अन्न बेचने का आदेश दिया. मांसाहार भोजन बनाकर राजा को खाने पर मजबूर करने लगी. राजा ने कहा कि आज एकादशी के व्रत में मैं तो सिर्फ फलाहार ग्रहण करता हूं. रानी ने शर्त याद दिलाते हुए राजा को कहा कि अगर यह तामसिक भोजन नहीं खाया तो मैं बड़े राजकुमार का सिर धड़ से अलग कर दूंगी.
राजा के सामने धर्म संकट
राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी को बताई. बड़ी महारानी ने राजा से धर्म का पालन करने की बात कही और अपने बेटे का सिर काट देने को मंजूर हो गई. राजा हताश थे और सुंदरी की बात न मानने पर राजकुमार का सिर देने को तैयार हो गए. सुंदरी के रूप में श्रीहरि राजा के धर्म के प्रति समर्पण को देखर अति प्रसन्न हुए और उन्होंने अपने असली रूप में आकर राजा को दर्शन दिए.
विष्णु जी ने राजा को बताया कि तुम परीक्षा में पास हुए, कहो क्या वरदान चाहिए. राजा ने इस जीवन के लिए प्रभू का धन्यवाद किया कहा कि अब मेरा उद्धार कीजिए. राजा की प्रार्थना श्रीहरि ने स्वीकार की और वह मृत्यु के बाद बैंकुठ लोक को चला गया.
Shri Krishna has said that by staying awake and worshipping on the night of Devuthani Ekadashi, the next 10 generations of the devotee attain a place in Vishnu Lok, ancestors get freedom from hell. The fast of Devuthani Ekadashi is incomplete without a story.
Devuthani Ekadashi Katha
Shri Krishna himself has told its significance in religious texts, according to which in a kingdom, no one from the people to the animals used to eat food on the day of Ekadashi. One day Lord Vishnu thought of testing the king and disguised himself as a beautiful woman and sat on the roadside. When the king met the beautiful woman, he asked her the reason for sitting there. The woman told that she is helpless. The king was fascinated by her beauty and said that you come with me to the palace as a queen.
Shri Hari tested the king
The beautiful woman put a condition in front of the king that she will accept this proposal only when she is given the rights to the entire kingdom and the king will have to eat whatever she cooks. The king accepted the condition. The next day on Ekadashi, Sundari ordered to sell food in the markets like other days. She started forcing the king to eat non-vegetarian food. The king said that today on Ekadashi fast, I will eat only fruits. The queen reminded the king of the condition and said that if he does not eat this non-vegetarian food, then I will cut off the head of the elder prince.
Dharm Dilemma in front of the king
The king told his situation to the elder queen. The elder queen asked the king to follow the dharma and agreed to cut off the head of his son. The king was desperate and agreed to give the prince's head when Sundari did not agree. Shri Hari in the form of Sundari was very happy to see the king's dedication towards religion and he came in his real form and appeared before the king.
Vishnu Ji told the king that you have passed the test, tell me what boon you want. The king thanked Prabhu for this life and said that now please save me. Shri Hari accepted the king's prayer and after death he went to Vaikunth Lok.
Story number 2
कथा-
एक राजा के राज्य में सभी लोग एकादशी का व्रत रखते थे। प्रजा तथा नौकर-चाकरों से लेकर पशुओं तक को एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाता था। एक दिन किसी दूसरे राज्य का एक व्यक्ति राजा के पास आकर बोला- महाराज! कृपा करके मुझे नौकरी पर रख लें। तब राजा ने उसके सामने एक शर्त रखी कि ठीक है, रख लेते हैं। किन्तु रोज तो तुम्हें खाने को सब कुछ मिलेगा, पर एकादशी को अन्न नहीं मिलेगा।
उस व्यक्ति ने उस समय 'हां' कर ली, पर एकादशी के दिन जब उसे फलाहार का सामान दिया गया तो वह राजा के सामने जाकर गिड़गिड़ाने लगा- महाराज! इससे मेरा पेट नहीं भरेगा। मैं भूखा ही मर जाऊंगा। मुझे अन्न दे दो। राजा ने उसे शर्त की बात याद दिलाई, पर वह अन्न छोड़ने को राजी नहीं हुआ, तब राजा ने उसे आटा-दाल-चावल आदि दिए। वह नित्य की तरह नदी पर पहुंचा और स्नान कर भोजन पकाने लगा। जब भोजन बन गया तो वह भगवान को बुलाने लगा- आओ भगवान! भोजन तैयार है। उसके बुलाने पर पीताम्बर धारण किए भगवान चतुर्भुज रूप में आ पहुंचे तथा प्रेम से उसके साथ भोजन करने लगे। भोजनादि करके भगवान अंतर्धान हो गए तथा वह अपने काम पर चला गया।
पंद्रह दिन बाद अगली एकादशी को वह राजा से कहने लगा कि महाराज, मुझे दुगुना सामान दीजिए। उस दिन तो मैं भूखा ही रह गया। राजा ने कारण पूछा तो उसने बताया कि हमारे साथ भगवान भी खाते हैं। इसीलिए हम दोनों के लिए ये सामान पूरा नहीं होता। यह सुनकर राजा को बड़ा आश्चर्य हुआ। वह बोला- मैं नहीं मान सकता कि भगवान तुम्हारे साथ खाते हैं। मैं तो इतना व्रत रखता हूं, पूजा करता हूं, पर भगवान ने मुझे कभी दर्शन नहीं दिए।
राजा की बात सुनकर वह बोला- महाराज! यदि विश्वास न हो तो साथ चलकर देख लें। राजा एक पेड़ के पीछे छिपकर बैठ गया। उस व्यक्ति ने भोजन बनाया तथा भगवान को शाम तक पुकारता रहा, परंतु भगवान न आए। अंत में उसने कहा- हे भगवान! यदि आप नहीं आए तो मैं नदी में कूदकर प्राण त्याग दूंगा। लेकिन भगवान नहीं आए, तब वह प्राण त्यागने के उद्देश्य से नदी की तरफ बढ़ा। प्राण त्यागने का उसका दृढ़ इरादा जान शीघ्र ही भगवान ने प्रकट होकर उसे रोक लिया और साथ बैठकर भोजन करने लगे। खा-पीकर वे उसे अपने विमान में बिठाकर अपने धाम ले गए। यह देख राजा ने सोचा कि व्रत-उपवास से तब तक कोई फायदा नहीं होता, जब तक मन शुद्ध न हो। इससे राजा को ज्ञान मिला। वह भी मन से व्रत-उपवास करने लगा और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुआ।
Second story
In the kingdom of a king, everyone used to observe Ekadashi fast. From the subjects and servants to the animals, no food was given on Ekadashi. One day, a person from another kingdom came to the king and said- Maharaj! Kindly employ me. Then the king put a condition in front of him that okay, I will employ you. But you will get everything to eat every day, but you will not get food on Ekadashi.
That person agreed at that time, but on Ekadashi, when he was given fruits, he went to the king and started pleading- Maharaj! This will not fill my stomach. I will die of hunger. Give me food. The king reminded him of the condition, but he did not agree to give up food, then the king gave him flour-pulses-rice etc. He reached the river as usual and after taking bath started cooking food. When the food was ready, he started calling God- Come God! Food is ready. On his call, the Lord wearing yellow clothes arrived in Chaturbhuj form and started eating with him with love. After eating, the Lord disappeared and he went to his work.
Fifteen days later, on the next Ekadashi, he started saying to the king, "Maharaj, give me double the food. That day I remained hungry." When the king asked the reason, he told that God also eats with us. That is why this food is not enough for both of us. The king was very surprised to hear this. He said- I cannot believe that God eats with you. I keep so many fasts, do so much worship, but God has never given me darshan.
On hearing the king's words, he said- Maharaj! If you do not believe, then come with me and see. The king sat hiding behind a tree. That person cooked food and kept calling God till evening, but God did not come. At last he said- O God! If you do not come, I will jump into the river and give up my life. But God did not come, then he moved towards the river with the intention of giving up his life. Knowing his firm resolve to give up his life, God soon appeared and stopped him and sat with him and started eating. After eating and drinking, he seated him in his plane and took him to his abode. Seeing this, the king thought that there is no benefit in fasting unless the mind is pure. This enlightened the king. He also started fasting with all his heart and finally attained heaven.
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