Monday, December 30, 2024

The story of Gajendra Moksha

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 The story of Gajendra Moksha is a beautiful episode from the Bhagavata Purana, illustrating devotion, surrender, and divine grace. It tells how Lord Vishnu saved Gajendra, the elephant king, from a crocodile, symbolizing liberation from the cycle of birth and death. 

 The Story: Once upon a time, there was a mighty elephant named Gajendra, who was the king of a lush forest. He lived with his herd in peace and grandeur. One day, while roaming in the forest, Gajendra felt thirsty and approached a serene lake with crystal-clear water. He stepped into the lake to drink and play. As Gajendra bathed in the water, a crocodile that lived in the lake attacked him, clamping its jaws onto his leg. A fierce battle ensued. Gajendra was strong and fought valiantly, but the crocodile was relentless. Over time, Gajendra's strength began to wane, as the crocodile had the advantage of being in its natural habitat. 

 Gajendra’s Surrender: When Gajendra realized that he could not win, he let go of his pride and worldly strength. He began to chant prayers and hymns to Lord Vishnu, surrendering completely to the divine. With deep devotion, Gajendra plucked a lotus flower from the lake and held it high with his trunk as an offering to the Lord, crying out for help. 

 Divine Intervention: Hearing Gajendra’s sincere prayers and seeing his total surrender, Lord Vishnu, seated on Garuda (his celestial eagle), rushed to his aid. Vishnu appeared with his Sudarshana Chakra (divine discus) and cut off the crocodile’s head, freeing Gajendra. 

 The Liberation: It was then revealed that the crocodile was actually a Gandharva (celestial being) named Huhu, who had been cursed to live as a crocodile. Upon his death, he was freed from the curse and returned to his celestial form. Gajendra, deeply moved by the Lord’s mercy, attained moksha (liberation) and was taken to Vaikuntha (the abode of Lord Vishnu). 

 Symbolism: Gajendra represents the soul trapped in the material world (lake). Crocodile symbolizes the karmic forces and attachments pulling the soul down. Lord Vishnu's intervention signifies divine grace that comes when one surrenders completely and prays with devotion. 

 The story teaches the power of bhakti (devotion), humility, and surrender, emphasizing that the Lord always protects his devotees in times of distress.

 गजेन्द्र मोक्ष की कथा (भागवत पुराण से) भक्ति, समर्पण और ईश्वर की कृपा का सुंदर उदाहरण है। यह कहानी बताती है कि कैसे भगवान विष्णु ने गजराज गजेन्द्र को मगरमच्छ से बचाया और उसे मोक्ष प्रदान किया।

 कहानी: प्राचीन समय में, एक शक्तिशाली हाथी गजेन्द्र एक घने जंगल का राजा था। वह अपने झुंड के साथ सुख-शांति से रहता था। एक दिन, जंगल में घूमते हुए गजेन्द्र को प्यास लगी। वह एक सुंदर झील के पास पहुँचा, जहाँ निर्मल जल था। वह झील में पानी पीने और खेलने के लिए उतर गया। जब गजेन्द्र झील में स्नान कर रहा था, तभी वहाँ रहने वाले एक मगरमच्छ ने उसके पैर को अपने मजबूत जबड़ों में पकड़ लिया। एक भयंकर संघर्ष शुरू हो गया। गजेन्द्र बलशाली था और पूरी ताकत से लड़ता रहा, लेकिन मगरमच्छ अपने जल के प्राकृतिक वातावरण में होने के कारण अधिक ताकतवर साबित हो रहा था। 

 गजेन्द्र का समर्पण: कई दिनों तक लड़ाई चलती रही। अंत में, गजेन्द्र ने समझ लिया कि वह अपनी ताकत से मगरमच्छ को पराजित नहीं कर सकता। उसने अपने अहंकार और अपनी शक्तियों को त्याग दिया और पूरी भक्ति के साथ भगवान विष्णु का स्मरण किया। उसने झील से एक कमल का फूल तोड़ा और अपनी सूंड में उठाकर भगवान को अर्पित करते हुए उनसे रक्षा की प्रार्थना की। 

 भगवान विष्णु का हस्तक्षेप: गजेन्द्र की सच्ची प्रार्थना और पूर्ण समर्पण सुनकर, भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर तुरंत उसकी सहायता के लिए पहुँचे। भगवान ने अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का वध कर दिया और गजेन्द्र को मुक्त किया। मोक्ष की प्राप्ति: उस समय यह भी प्रकट हुआ कि मगरमच्छ वास्तव में एक गंधर्व (अप्सराओं का साथी) था, जिसका नाम हूहू था। उसे एक ऋषि ने शाप दिया था, जिससे वह मगरमच्छ बन गया था। भगवान विष्णु की कृपा से हूहू को अपने शाप से मुक्ति मिली और वह अपने गंधर्व रूप में लौट आया। गजेन्द्र, जो भगवान की कृपा और दया से अभिभूत था, ने मोक्ष प्राप्त किया और भगवान विष्णु उसे अपने धाम वैकुण्ठ ले गए। 

 कथा का संदेश: गजेन्द्र आत्मा का प्रतीक है, जो संसार (झील) में फंसी हुई है। मगरमच्छ कर्म और सांसारिक बंधनों का प्रतीक है। भगवान विष्णु का हस्तक्षेप यह दिखाता है कि सच्चे समर्पण और भक्ति के माध्यम से ईश्वर अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। यह कहानी हमें सिखाती है कि भक्ति, विनम्रता और समर्पण के द्वारा ईश्वर की कृपा प्राप्त की जा सकती है।


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