Allauddin Khilji's daughter was deeply in love with this brave Rajput
This is the story of the brave Rajput prince Veeramdev of Jalore. Veeramdev was an expert in wrestling and was a very valiant warrior. He was famous far and wide. Veeramdev, son of Kanhad Dev, the ruler of Sonagara Chauhan of Jabalipur (present-day Jalore) near Mewar, lived in the court of Delhi. When he lived here, Princess Firoz, daughter of Allauddin Khilji, fell in love with Veeram.
It is said that after hearing about Veeramdev's fame and personality, Princess Firoza, daughter of the then king of Delhi, Allauddin Khilji, fell in love with Veeram and the princess insisted on marrying him at any cost and started saying, 'Var varaun Veeramdev na to rahungi akan kunwari', meaning if I marry, I will marry Veeramdev or else I will remain an intact virgin.
Seeing his daughter's stubbornness, Alauddin Khilji, thinking of taking revenge for his defeat and gaining political advantage, sent a love proposal for his daughter to the prince of Jalore. It is said that Veeramdev rejected the proposal saying that...
'Mamo laaje Bhatiya, Kul laaje Chauhan,
Je main parnu Turkani, to pashchim uge bhaan...''
Meaning: If I marry a Turkani, then my maternal uncle's (Bhati) clan and my own Chauhan clan will be put to shame and this can happen only when the sun rises from the west.
Alauddin, enraged by this reply, declared war. It is said that the Turks' army laid siege to Jalore for a year, then the war took place and thousands of Rajput women of the fort committed Jauhar. Veeramdev himself died a martyr's death in the war at the young age of 22.
Finally, the Turkish army took Veeramdev's head to Delhi and placed it in front of the princess on a gold plate. Seeing this, princess Firoza became very sad and she cremated the head. Later, she jumped into the Yamuna river in grief and gave up her life. There is also a legend that as soon as Firoza came in front of Veeramdev, his head turned away.
यह कहानी है जालौर के वीर राजपूत राजकुमार वीरमदेव की। वीरमदेव को कुश्ती में महारत हासिल थी और वह बहुत ही शूरवीर योद्धा था। उसकी प्रसिद्ध दूर दूर तक थी। मेवाड़ के पास ही जबालिपुर (वर्तमान जालौर) के सोनगरा चौहान शासक कान्हड़ देव का पुत्र वीरमदेव दिल्ली दरबार में रहता था। जब वह यहां रहता था तो अलाउद्दीन खिलजी की बेटी शहजादी फीरोज को वीरम से प्यार हो गया।
कहते हैं कि वीरमदेव की शोहरत और व्यक्तित्व के बारे में सुनकर दिल्ली के तत्कालीन बादशाह अल्लाउद्दीन खिलजी की पुत्री शहजादी फिरोजा का दिल वीरम पर आ गया और शहजादी ने किसी भी कीमत पर उससे शादी करने की जिद पकड़ ली और कहने लगी, 'वर वरूं वीरमदेव ना तो रहूंगी अकन कुंवारी' अर्थात निकाह करूंगी तो वीरमदेव से नहीं तो अक्षत कुंवारी रहूंगी।
बेटी की जिद को देखकर अलाउद्दीन खिलजी ने अपनी हार का बदला लेने और राजनैतिक फायदा उठाने की सोचकर अपनी बेटी के लिए जालौर के राजकुमार को प्रणय प्रस्ताव भेजा। कहते हैं कि वीरमदेव ने यह कहकर प्रस्ताव ठुकरा दिया कि...
'मामो लाजे भाटियां, कुल लाजे चौहान,
जे मैं परणु तुरकणी, तो पश्चिम उगे भान।''
अर्थात : अगर मैं तुरकणी से शादी करूं तो मामा (भाटी) कुल और स्वयं का चौहान कुल लज्जित हो जाएंगे और ऐसा तभी हो सकता है जब सूरज पश्चिम से उगे।
इस जवाब से आगबबूला होकर अलाउद्दीन ने युद्ध का ऐलान कर दिया। कहते हैं कि एक वर्ष तक तुर्कों की सेना जालौर पर घेरा डालकर बैठी रही फिर युद्ध हुआ और किले की हजारों राजपूतानियों ने जौहर किया। स्वयं वीरमदेव ने 22 वर्ष की अल्पायु में ही युद्ध में वीरगति पाई।
अंत में तुर्की की सेना वीरमदेव का मस्तक दिल्ली ले गई और शहजादी के एक स्वर्ण थाल में उनका मस्तक उनके सामने रख दिया। इसे देखकर शाहजादी फिरोजा बहुत दुखी हुई तब उसने मस्तक का अग्नि संस्कार किया। बाद में दुखी होकर यमुना नदी में कूदकर अपनी जान दे दी। ऐसी किंवदंति भी है कि जैसे ही फिरोजा सामने आई वीरमदेव के मस्तक ने मुंह फेर लिया।
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