हाथी और सियार की कहानी : हितोपदेश | The Elephant And The Jackal Hitopadesha Story
Read the English version after the Hindi story
घने जंगल में कर्पूरतिलक नामक हाथी रहता था. उसका शरीर हृष्ट-पुष्ट और मांसल था. जब भी उस पर दृष्टि पड़ती, जंगल में रहने वाले सियारों के मुँह में पानी आ जाता. वे हाथी को मारकर कई दिनों के लिए अपने भोजन की व्यवस्था करना चाहते थे. किंतु हाथी जैसे विशाल और ह्रष्ट-पुष्ट जानवर को मारना उनके बस के बाहर था.
अन्य सियारों की मंशा जानकर उनके दल के सबसे वृद्ध सियार ने एक दिन सभा बुलाई और बोला, “मैं एक ऐसी युक्ति जानता हूँ, जिससे हम इस विशालकाय हाथी का कामतमाम कर सकें. यदि तुम वैसा करो, जैसा मैं कहता हूँ, तो इस हाथी के मांस का हम कई दिनों तक भक्षण कर सकेंगे.”
सियारों को यही चाहिए था. वे तैयार हो गए. बूढ़े सियार ने उन्हें युक्ति बता दी. युक्ति अनुसार कुछ सियार हाथी के पास गए और उसे प्रणाम कर बोले, “महाराज की जय हो. महाराज की जय हो.”
स्वयं के लिए महाराज का संबोधन सुनकर हाथी (Elephant) चौंका और बोला, “कौन हो तुम लोग? मेरे पास क्यों आये हो? और मुझे महाराज क्यों संबोधित कर रहे हो?
सियारों के दल में से एक सियार बोला, “महाराज! हम सियार है. इसी वन में निवास करते हैं. बिना राजा के ये वन हमें नहीं सुहाता. इसलिए हम सबने निर्णय लिया है कि आपको इस वन का राजा घोषित कर दिया जाए. महाराज कृपा कर इस वन के राजा बनकर हमारा उपकार करें. हम सबने आज ही आपके राज्यभिषेक की व्यवस्था कर दी है. राज्यभिषेक का लग्न समय पर निकट है, महाराज, कृपया शीघ्र हमारे साथ चलें.”
सियारों की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर हाथी जंगल का राजा बनने तैयार हो गया और उनके पीछे-पीछे चलने लगा. सियार उसे जिस मार्ग से ले जा रहे थे, वहाँ एक गहरा दलदल था.
अनभिज्ञ हाथी दलदल में फंस गया. निकलने का बहुत प्रयास करने के बाद भी हाथी दलदल से बाहर नहीं निकल पाया. उसने सहायता के लिए सियारों को पुकारा, “अपने होने वाले राजा की सहायता करो.”
तब सियार बोले, “ऐसा मूर्ख हमारा राजा कैसे हो सकता है? तुम्हारी तो यही गत होनी थी. तुम हमारा आहार हो. तुम्हारे मांस का भक्षण कर हमारे कुछ दिन मज़े से कटेंगे.”
हाथी अपनी मूर्खता पर पछताने लगा. वह दलदल से निकल नहीं पाया और वहीं उसके प्राण-पखेरू उड़ गए. सियारों ने छककर दवात उड़ाई.
सीख
जो कार्य बल से संभव नहीं, उसमें युक्ति से काम लेना चाहिये.
An elephant named Karpurtilak lived in a dense forest. His body was strong and muscular. Whenever they saw him, the jackals living in the forest would have their mouths watering. They wanted to kill the elephant and arrange their food for several days. But it was beyond their control to kill a huge and strong animal like an elephant.
Knowing the intentions of the other jackals, the oldest jackal of his group called a meeting one day and said, “I know a trick by which we can kill this giant elephant. If you do as I say, we will be able to eat this elephant's meat for many days."
This is what the jackals wanted. They got ready. The old jackal told them the trick. As per the strategy, some jackals went to the elephant and saluted him and said, “Victory to the King.” Jai Maharaj.”
Hearing the king's address to himself, the elephant was startled and said, “Who are you people? Why have you come to me? And why are you addressing me Maharaj?
One jackal from the group of jackals said, “Maharaj! We are jackals. Live in this forest. This forest does not suit us without a king. Therefore, we all have decided that you should be declared the king of this forest. Maharaj, please do us a favor by becoming the king of this forest. We have made arrangements for your coronation today itself. The time for the coronation is near, Maharaj, please come with us quickly.”
Being influenced by the smooth talk of the jackals, the elephant got ready to become the king of the jungle and started following them. The path through which the jackals were taking him was a deep swamp.
The ignorant elephant got stuck in the swamp. Even after trying hard to get out, the elephant could not get out of the swamp. He called out to the jackals for help, “Help your future king.”
Then the jackal said, “How can such a fool be our king? This was supposed to be your fate. You are our food. We will have fun eating your flesh for a few days.”
The elephant started regretting his foolishness. He could not get out of the swamp and lost his life there. The jackals enjoyed a good meal for many days.
Lesson (Moral of the story)
The work which is not possible by force, should be done using tact.
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