Wednesday, August 28, 2024

The Story of the Great King Rantideva

 #ApniSanskriti – Back to veda

महान राजा रंतिदेव की कहानी- रंतिदेव जितने दयालु, यह कहावत बिना कारण के नहीं है।

The Story of the Great King Rantideva- The saying, as compassionate as Rantideva is not without a reason. 



This story tells us about the generous and kind King Rantideva of ancient days and his spiritual way which procured him mukti or moksha. He was a great devotee of Lord Vishnu and saw the Lord in everyone and everywhere. So he worshipped Lord Vishnu by helping and caring all the people of his kingdom with great love. He always used to be ready to provide whatever was needed by his people and never showed any difference in his generosity between the poor and the rich. Rantideva distributed his wealth that he had in plenty to the poor and the needy as he was never greedy for wealth but showed pleasure to serve his people and thought it was a way to spread the blessings of Lord Vishnu.

In this way all went well and people lived happily and with prosperity in his country. But suddenly there was disaster. Unseasoned rains and winds destroyed many crops, caused death of animals in his country that lead to scarcity of food. The common man ran to seek help from their kindhearted king. Without a second thought, Rantideva distributed his wealth and treasure to his people and prayed to Lord Vishnu to bless him with strength to protect them. The people were happy with the king’s kindness.

A horrible famine:

However, the condition became more worse as days passed due to continuous failure of the crops resulting in famine throughout the region. People starved without food and water and were homeless. This was a horrible disaster faced by the king who himself did not have any food. Whenever he and his family had little food, they would first distribute them to the people who came with hungry.

As time passed, the drought got more severe and the king was left with nothing for his starving poor people. He felt very miserable but had a strong faith on Lord Vishnu and prayed him with devotion. Though there never came a good time for his country and the famine continued.


New hope:

Rantideva starved for days long but still meditated and prayed to Lord Vishnu. He became very weak with lack of food and was hardly able to move. On one fine day, unexpectedly the king and his family were offered food by a stranger. As they saw the food he and his family were happy and glad and as they were about to have the food, a poor hungry Brahmin came seeking for food. The king received him respectfully and offered a part of his food. The Brahmin ate happily and was pleased by the king. As soon as he left, they were about to eat again but then there came a hungry beggar to their doorstep. Rantideva offered him too with some part of the food. The beggar left satisfied and soon there came a man with his dogs to seek food and informed about starving for many days now. The king offered them with the remaining food. He and his dogs finished all the solid food and Rantideva was left only with water to drink.

When the king was about to drink the water, just then came a man, Chandala, whose throat pinched with thirst and he requested the king to offer him some water. The king without any hesitation gave him the water and prayed to the Lord to give him strength to feel the pain of others rather than wealth and power.

Rantideva attains moksha:

As the man drank the water, his eye sparkled brightly and was full of energy that made the king fulfilled and refreshed. Suddenly there appeared Lord Vishnu and all his attendants. Vishnu conveyed to the king that he was very pleased with his devotion and love to his people. He told that all his sufferings will end and he will be rendered with all wealth and riches only if he continued to worship him. Instead, Rantideva told that he had no desire to worldly pleasures but rather he was completely absorbed in Vishnu and helping out those who need his help. 

Lord Vishnu blessed his devotee Rantideva who attained moksha and became one of the great yogis involved in meditation.


यह कहानी हमें प्राचीन काल के उदार और दयालु राजा रंतिदेव और उनके आध्यात्मिक मार्ग के बारे में बताती है, जिससे उन्हें मुक्ति या मोक्ष प्राप्त हुआ। वे भगवान विष्णु के बहुत बड़े भक्त थे और हर जगह और हर जगह भगवान को देखते थे। इसलिए उन्होंने अपने राज्य के सभी लोगों की बहुत प्यार से मदद और देखभाल करके भगवान विष्णु की पूजा की। वे हमेशा अपने लोगों की हर ज़रूरत को पूरा करने के लिए तैयार रहते थे और अपनी उदारता में कभी भी गरीब और अमीर के बीच कोई अंतर नहीं दिखाते थे। रंतिदेव ने अपनी भरपूर संपत्ति गरीबों और ज़रूरतमंदों में बाँट दी क्योंकि वे कभी भी धन के लालची नहीं थे, बल्कि अपने लोगों की सेवा करने में खुशी दिखाते थे और सोचते थे कि यह भगवान विष्णु का आशीर्वाद फैलाने का एक तरीका है।

इस तरह सब ठीक रहा और लोग उनके देश में खुशी और समृद्धि के साथ रहने लगे। लेकिन अचानक आपदा आ गई। बेमौसम बारिश और हवाओं ने उनके देश में कई फसलों को नष्ट कर दिया, जानवरों की मौत हो गई जिससे भोजन की कमी हो गई। आम आदमी अपने दयालु राजा से मदद माँगने के लिए दौड़ा। बिना कुछ सोचे समझे रंतिदेव ने अपनी संपत्ति और खजाना अपने लोगों में बांट दिया और भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि वे उन्हें उनकी रक्षा करने की शक्ति प्रदान करें। राजा की दयालुता से लोग खुश थे।

भयानक अकाल:

हालाँकि, जैसे-जैसे दिन बीतते गए, फसलें लगातार खराब होती गईं और पूरे क्षेत्र में अकाल की स्थिति पैदा हो गई। लोग बिना भोजन और पानी के भूखे मर रहे थे और बेघर हो गए थे। यह राजा के लिए एक भयानक आपदा थी, जिसके पास खुद भी कुछ खाने को नहीं था। जब भी उसके और उसके परिवार के पास थोड़ा भी खाना होता, तो वे सबसे पहले उसे भूखे लोगों में बाँट देते।

जैसे-जैसे समय बीतता गया, सूखा और भी भयंकर होता गया और राजा के पास अपने भूखे गरीब लोगों के लिए कुछ भी नहीं बचा। वह बहुत दुखी महसूस करता था लेकिन भगवान विष्णु पर उसकी दृढ़ आस्था थी और वह उनसे भक्तिपूर्वक प्रार्थना करता था। हालाँकि उसके देश के लिए कभी भी अच्छा समय नहीं आया और अकाल जारी रहा।


नई उम्मीद:

रंतिदेव कई दिनों तक भूखे रहे लेकिन फिर भी भगवान विष्णु का ध्यान और प्रार्थना करते रहे। भोजन की कमी से वह बहुत कमजोर हो गए और मुश्किल से चल पा रहे थे। एक दिन, अप्रत्याशित रूप से राजा और उनके परिवार को एक अजनबी ने भोजन दिया। जैसे ही उन्होंने भोजन देखा, वह और उनका परिवार खुश और प्रसन्न हो गए और जैसे ही वे भोजन करने वाले थे, एक गरीब भूखा ब्राह्मण भोजन की तलाश में आया। राजा ने उसका सम्मानपूर्वक स्वागत किया और अपने भोजन का एक हिस्सा उसे दिया। ब्राह्मण ने खुशी-खुशी खाया और राजा से प्रसन्न हुआ। जैसे ही वह चला गया, वे फिर से खाने वाले थे लेकिन तभी एक भूखा भिखारी उनके दरवाजे पर आया। रंतिदेव ने उसे भी भोजन का कुछ हिस्सा दिया। भिखारी संतुष्ट होकर चला गया और कुछ ही देर में एक व्यक्ति अपने कुत्तों के साथ भोजन मांगने आया और बताया कि वह कई दिनों से भूखा है। राजा ने उन्हें बचा हुआ भोजन दिया। उसने और उसके कुत्तों ने सारा ठोस भोजन खा लिया और रंतिदेव के पास पीने के लिए केवल पानी बचा।

जब राजा पानी पीने ही वाला था, तभी एक व्यक्ति आया, जिसका नाम चांडाल था, जिसका गला प्यास से सूख रहा था और उसने राजा से पानी देने का अनुरोध किया। राजा ने बिना किसी हिचकिचाहट के उसे पानी दिया और भगवान से प्रार्थना की कि वह उसे धन और शक्ति के बजाय दूसरों के दर्द को महसूस करने की शक्ति दें।

रंतिदेव को मोक्ष की प्राप्ति:

जैसे ही उस व्यक्ति ने पानी पिया, उसकी आँखें चमक उठीं और ऊर्जा से भर गईं, जिससे राजा संतुष्ट और तरोताजा हो गया। अचानक भगवान विष्णु और उनके सभी सेवक प्रकट हुए। विष्णु ने राजा को बताया कि वे उसकी भक्ति और अपने लोगों के प्रति प्रेम से बहुत प्रसन्न हैं। उन्होंने कहा कि उसके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे और उसे सभी धन और संपत्ति तभी प्राप्त होगी, जब वह उनकी पूजा करना जारी रखेगा। इसके बजाय, रंतिदेव ने कहा कि उन्हें सांसारिक सुखों की कोई इच्छा नहीं है, बल्कि वे पूरी तरह से विष्णु में लीन हैं और उन लोगों की मदद कर रहे हैं, जिन्हें उनकी मदद की ज़रूरत है। 

भगवान विष्णु ने अपने भक्त रंतिदेव को आशीर्वाद दिया, जिन्होंने मोक्ष प्राप्त किया और ध्यान में लीन महान योगियों में से एक बन गए।

No comments:

Post a Comment