Monday, September 30, 2024

The Damru of Shiva

 This is an imaginary story but has a strong message. 

Read the English content after the Hindi story 


शिव का डमरू 🍁 courtesy  @JitendraECI ON X



एक बार इंद्र ने नाराज होकर किसानों से कहा कि 12 वर्षों तक बारिश नहीं होगी और फसलें नहीं उगेंगी। किसान चिंतित हुए और इंद्र से प्रार्थना की। इंद्र ने कहा, "भगवान शंकर का डमरू बजे तो वर्षा होगी," लेकिन शिव को मना लिया।

किसान भगवान शिव के पास गए तो उन्होंने कहा, "डमरू तो 12 साल बाद ही बजेगा।" यह सुनकर किसान निराश हो गए और 12 वर्षों तक खेती न करने का फैसला किया। सभी ने काम छोड़ दिया, सिवाय एक किसान के।

वह किसान निरंतर खेत जोतता, बीज बोता और अपने काम में लगा रहा। गाँव वाले उसका मज़ाक उड़ाते और पूछते, "बारिश न होने पर तुम मेहनत क्यों कर रहे हो?" किसान ने जवाब दिया, "मैं अभ्यास कर रहा हूँ ताकि 12 साल बाद कठिनाई न हो।"

किसान ने कहा, "अगर मैं 12 साल कुछ नहीं करूंगा तो खेती करना भूल जाऊंगा और मेरे शरीर की श्रम करने की आदत छूट जाएगी। इसलिए मैं खेत में काम करता हूँ ताकि जब बारिश हो तो मुझे कोई दिक्कत न हो।"

इस चर्चा को माता पार्वती कौतूहल से सुन रही थीं। उन्होंने भोलेनाथ से कहा, "प्रभु, आप भी 12 वर्षों बाद डमरू बजाना भूल सकते हैं।" यह सुनकर भगवान शिव चिंतित हो गए और डमरू उठाकर बजाने का प्रयास किया।

जैसे ही भगवान शिव ने डमरू बजाया, बारिश होने लगी। जिसने निरंतर खेत में मेहनत की थी, उसके खेतों में फसल लहलहाने लगी। बाकी किसान केवल पश्चात्ताप कर सकते थे।

इस कहानी से सिखने को मिलता है कि डमरू कभी भी बज सकता है। इसलिए नकारात्मक बातों पर ध्यान देने की बजाय हमें अपने कौशल को निखारते रहना चाहिए।

हमेशा अपनी अभिरुचि और कार्य का अभ्यास करते रहें।

ॐ नमः शिवाय।


Once Indra angrily told the farmers that there would be no rain for 12 years and crops would not grow. The farmers got worried and prayed to Indra. Indra said, "It will rain if Bhagwan Shankar's Damru is played," . 

When the farmers went to Lord Shiva, he said, "The Damru will be played only after 12 years." Hearing this, the farmers got disappointed and decided not to farm for 12 years. 

Everyone stopped working, except one farmer. The farmer continued to plough the field, sow seeds and do his work. The villagers would mock him and ask, "Why are you working hard when there is no rain?" The farmer replied, "I am practicing so that there will be no difficulty after 12 years." The farmer said, "If I do nothing for 12 years, I will forget farming and my body will lose the habit of doing physical labour. That is why I work in the field so that I do not face any problem when it rains."

Maa Parvati was listening to this discussion with curiosity. She said to Bholenath, "Prabhu, you too may forget to play the Damru after 12 years." Hearing this, Bhagwan Shiva became worried and picked up the Damru and tried to play it.

As soon as Bhagwan Shiva played the Damru, it started raining. The one who had worked hard in the field continuously, his fields started getting crops. The rest of the farmers could only repent.

We learn from this story that the Damru can be played at any time. Therefore, instead of focusing on negative things, we should keep improving our skills.

Always keep practicing your interest and work.

Om Namah Shivaya.

Sunday, September 29, 2024

Bhagwat Geeta Chapter 1 Benefits : गीता प्रथम अध्याय पाठ का महत्व और लाभ

 READ IN ENGLISH BELOW THE HINDI STORY 

गीता में भगवान श्री कृष्ण ने रणभूमि में अर्जुन को जो ज्ञान दिया था। वह गीता में बताया गया है। गीता में कुल 18 अध्याय हैं और उन सभी ह अपना अलग अलग महत्व है। आइए जानते हैं गीता के पहला अध्याय का महत्व क्या है।

श्री गीता उपनिषदों का सार है। महाभारत युद्ध के समय रणभूमि में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो ज्ञान दिया था वह गीता में बताया गया है। गीता में ऐसी बहुत सी बातें हैं जो मनुष्य को जीवन की कई कठिनाइयों को आसान बनाती है। इतना ही नहीं गीता पढ़ने पर मनुष्य को बहुत सी नई जानकारियां भी मिलती है। साथ ही हर अध्याय के नियमित पाठ का अपना लाभ और महत्व है। भगवान शिव ने देवी पार्वती को गीता के पहले अध्याय के पाठ का महत्व जो बताया है वही यहां आपके लिए प्रस्तुत है। लेकिन गीता के पहले अध्याय के महत्व को जानने से पहले जान लीजिए श्रीमद्भगवद्गीता के प्रथम अध्याय की खास बातें। गीता के पहले अध्याय का नाम अर्जुन विषाद योग है। इस अध्याय में कुरुक्षेत्र के मैदान में उपस्थित बंधुओं और संबंधियों को सामने देखकर अर्जुन के मन में उठे विषाद और मनःस्थिति का वर्णन किया गया है, जिसे संजय धृतराष्ट्र को बताते हैं।


गीता प्रथम अध्याय का महत्व

एक समय पार्वती जी ने पूछा है महादेव जी किस ज्ञान के बल पर संसार के सब लोग आपको शिव कहकर पूजते हैं। मृगछाला ओढ़े और अपने सभी अंगों में शमशान की विभूति लगाएं, गले में सर्प और नर मुंडों की माला पहने हुए हो। इनमें तो कोई भी पवित्र नहीं, फिर आप किस ज्ञान से पवित्र माने जाते हैं? तब महादेव ने उत्तर दिया कि हे प्रिये सुनो मैं गीता ज्ञान को अपने हृदय में धारण करने से पवित्र माना जाता हूं। इस ज्ञान से मुझे बाहर के कर्म नहीं व्यापते। तब पार्वती जी ने कहा कि हे भगवान जिस गीता ज्ञान की आप ऐसी स्तुति करते हैं, उसके श्रवण करने से कोई कृतार्थ भी हुआ है? महादेव ने उत्तर देते हुए कहा कि इस ज्ञान को सुनकर बहुत से जीव कृतार्थ हुए हैं और आगे भी होंगे। मैं तुम्हें एक पुरातन कथा कहता हूं। तुम सुनो।


एक समय पाताल लोक में शेषनाग की शय्या पर श्री नारायण जी नैन मूंदकर आनंद में मग्न थे। उस वक्त भगवान के चरण दबाते हुए लक्ष्मी जी ने पूछा हे प्रभू! निद्रा और आलस्य तो उन पुरुषों को व्यापता है जो जीव तामसी होते हैं, फिर आप तो तीनों गुणों से अतीत हो। आप तो वासुदेव हो, आप जो नेत्र मूंद रहे हों, इससे मुझके बड़ा आश्चर्य है। नारायण जी ने उत्तर देते हुए कहा हे लक्ष्मी! मुझको निद्रा आलस्य नहीं व्यापता, एक शब्द रूप जो भगवद्गीता है उसमें जो ज्ञान है उसके आकार रुप है, यह गीता शब्द रूप अवतार है, इस गीता में यह अंग है पांच अध्याय मेरे मुख है, दस अध्याय मेरी भुजा हैं, सोलहवां अध्याय मेरा हृदय और मन और मेरा उदर है, सत्रहवां अध्याय मेरी जंघा है, अठारहवां अध्याय मेरे चरण हैं। गीता श्लोक ही मेरी नाड़ियां हैं और जो गीता के अक्षर है वो मेरा रोम हैं। ऐसा मेरा शब्द रुपी जो गीता ज्ञान है उसी के अर्थ मैं हृदय में विचार करता हूं और बहुत आनंद प्राप्त होते हूं। लक्ष्मी जी बोलीं हे श्री नारायण जी ! जब श्री गीता जी का इतना ज्ञान है तो उसको सुनकर कोई जीव कृतार्थ भी हुआ है। सो मुझसे कहो। तब श्री नारायण ने कहा हे लक्ष्मी! गीता ज्ञान को सुनकर बहुत से जीव कृतार्थ हुए हैं, सो तुम श्रवण करो।


एक व्यक्ति था, जो चाण्डालों के कर्म करता था और तेल नमक का व्यापार करता था। उसने एक बकरी पाली। एक दिन वह बकरी चराने के लिए वन में गया और वृक्ष से पत्ते तोड़ने लगा। वहां, उसे एक सांप से डंस लिया। जिससे वह तुरंत मर गया। मरने के बाद उसने बहुत से नरक भोगे और फिर उसका जन्म बैल के रूप में हुआ। उस बैल को एक भिक्षुक ने मोल लिया। वह भिक्षुक उसपर चढ़कर सारे दिन मांगता फिरे, जो कुछ भिक्षा मांगकर लाता वह उसे अपने परिवार के साथ मिलकर खाता और वो बैल सारी रात द्वार पर खड़ा रहता। उसके खाने पीने का भी कोई ख्याल नहीं करता था। और सुबह होते ही बैल पर चढ़कर फिर मांगने निकल जाता। जब बहुत दिन हो गए तो वह बैल भूख से गिर गया लेकिन, उसके प्राण नहीं निकले। नगर के लोगों ने देखा और उस बैल को कोई तीर्थ का फल दे, तो कोई व्रत का फल दें, तब भी उस बैल के प्राण नहीं छूटे। एक दिन गणिका आई, उसने लोगों से पूछा यह कैसी भीड़ है, तो उन्होंने कहा कि इसके प्राण नहीं निकलते, अनेक पुण्यों का फल दे रहे हैं, तो भी इसकी मुक्ति नहीं होती। तब गणिका ने कहा कि मैंने जो कर्म किया है उसका फल मैंने इस बैल को दिया है। इतना कहते ही बैल की मुक्ति हो गई। तब बैल ने एक ब्राह्मण के घर जन्म लिया। पिता ने उसका नाम सुशर्मा रखा। उसके पिता ने उसे पढ़ाया लिखाया। उसको अपने पिछले जन्म की सुध थी। उसने एक दिन मन में विचार किया, जिस गणिका ने मुझे बैल की योनि से छुड़ाया था उसका दर्शन करूं। विप्र चलते-चलते गणिका के घर गया और कहा आप मुझे पहचानती हैं?


गणिका ने कहा मैं नहीं जानती तुम कौन हो। तब उसने कहा कि मैं वहीं, बैल हूं, जिसको आपने अपने पुण्य दिए थे। तब मैं बैल की योनी से छूटा था। अब मैं विप्र के घर जन्म हूं। आप अपना पुण्य बताएं? गणिका ने कहा कि मैंने अपने जाने पुण्य नहीं किया, परंतु मेरे घर एक तोता है। वह रोज सवेरे कुछ पढ़ता है। मैं उसका वाक्य सुनती हूं, उस पुण्य का फल मैंने तुम्हें दे दिया।


तब विप्र ने तोते से पूछा की तू सवेरे क्या पढ़ता है। तोते ने कहा, मैं पिछले जन्म में विप्र का पुत्र था। मेरे पिता ने मुझे गीता के पहले अध्याय का पाठ सुनाया करते थे। एक दिन मैंने गुरु से कहा कि मुझको आपने क्या पढ़ाया है। तब गुरुजी ने मुझे शाप दिया कि तू तोता बन जा। इसके बाद से मैं तोता बन गया। एक दिन बहेलिया मुझे पकड़ ले आया और एक विप्र ने मुझे मोल ले लिया। वह विप्र भी अपने पुत्र को गीता का पाठ सिखाता था। तब मैंने भी यह पाठ सीख लिया। उसी दिन विप्र के घर में चोर घुस गए। उन्हें घन तो प्राप्त नहीं हुआ लेकिन, वह मेरा पिंजरा उठा ले आए। उनकी यह गणिका मित्र थी। वह मुझे उसके पास ले आए। सो में नित्य प्रात: गीताजी के पहले अध्याय का पाठ करत हूं। जिसे यह गणिका सुनती है। पर इस गणिका को समझ में नहीं आती। जो मैं पढ़ता हूं, वही, इस गणिका ने तेरे निमित्त दिया था। वह श्रीगीताजी के पहले अध्याय का फल था। तब विप्र ने कहा कि हे, तोते तू भी विप्र है मेरे आशीर्वाद से तेरा कल्याण हो। सो हे लक्ष्मी! विप्र के इतना कहते ही वह तोता भी मुक्ति को प्राप्त हो गया। तब गणिका ने बुरे कर्म छोड़, भले कर्म ग्रहण किए और नित्य स्नान करके श्री गीताजी के प्रथम अध्याय का पाठ करना शुरू कर दिया जिससे उसकी भी मुक्ति हो गई।


The knowledge that Shri Krishna gave to Arjun in the battlefield in the Gita is told in the Gita. There are a total of 18 chapters in the Gita and all of them have their own importance. Let us know what is the importance of the first chapter of the Gita.


Shri Gita is the essence of the Upanishads. The knowledge that Shri Krishna gave to Arjun in the battlefield during the Mahabharata war is told in the Gita. There are many things in the Gita that make many difficulties of life easier for man. Not only this, man also gets a lot of new information by reading the Gita. Also, regular reading of each chapter has its own benefit and importance. The importance of reading the first chapter of the Gita, which Bhagwan Shiva has told Goddess Parvati, is presented here for you. But before knowing the importance of the first chapter of the Gita, know the special things about the first chapter of the Srimad Bhagavad Gita. The name of the first chapter of the Gita is Arjun Vishada Yoga. In this chapter, Arjun's sadness and state of mind after seeing his brothers and relatives present in the battlefield of Kurukshetra has been described, which Sanjaya tells to Dhritarashtra.

Importance of the first chapter of Gita


Once Parvati ji asked Mahadev ji, on the basis of which knowledge all the people of the world worship you as Shiva. You wear deer skin and apply the ashes of the crematorium on all your body parts, you wear a garland of snakes and human heads around your neck. None of these is pure, then by which knowledge are you considered pure? Then Mahadev replied, O beloved, listen, I am considered pure by keeping the knowledge of Gita in my heart. With this knowledge, I am not affected by external deeds. Then Parvati ji said, O Lord, has anyone been fulfilled by listening to the knowledge of Gita which you praise so much? Mahadev replied that many beings have been fulfilled by listening to this knowledge and will be fulfilled in future too. I will tell you an ancient story. You listen.

Once in the netherworld, Shri Narayan Ji was immersed in bliss with his eyes closed on the bed of Sheshnag. At that time, pressing the feet of the Lord, Lakshmi Ji asked, O Lord! Sleep and laziness affect those men who are Tamasi, then you are beyond all three Gunas. You are Vasudev, I am very surprised that you are closing your eyes. Narayan Ji replied, O Lakshmi! I am not affected by sleep and laziness, the Bhagavad Gita which is in the form of a word has its form and shape, this Gita is the incarnation in the form of words, this Gita has these parts, five chapters are my mouth, ten chapters are my arms, sixteenth chapter is my heart and mind and my stomach, seventeenth chapter is my thigh, eighteenth chapter is my feet. The verses of Gita are my nerves and the letters of Gita are my hair. I contemplate in my heart the meaning of the knowledge of Gita which is in the form of words and get immense pleasure. Laxmi Ji said, O Shri Narayan Ji! When Shri Gita Ji has so much knowledge, then has any living being been fulfilled by listening to it? So tell me. Then Shri Narayan said, O Lakshmi! Many living beings have been fulfilled by listening to the knowledge of Gita, so you please listen to it.

There was a person who used to do the work of a Chandala and used to trade in oil and salt. He reared a goat. One day he went to the forest to graze the goat and started plucking leaves from a tree. There, a snake bit him. He died immediately. After death, he suffered many hells and was born again as a bull. A beggar bought that bull. That beggar would ride on it and beg all day. Whatever he brought back after begging, he would eat it with his family and that bull would stand at the door all night. No one would even care about its food and drink. And as soon as it was morning, he would ride on the bull and go out to beg again. When many days passed, that bull fell down due to hunger but it did not die. The people of the city saw it and some gave the bull the fruits of pilgrimage or the fruits of fasting, but even then the bull did not die. One day a prostitute came and asked the people what kind of crowd was this, they said that its life is not leaving, they are giving the fruits of many good deeds, but still it does not get salvation. Then the prostitute said that I have given the fruits of my deeds to this bull. Saying this, the bull was liberated. Then the bull was born in a Brahmin's house. His father named him Susharma. His father got him educated. He remembered his previous birth. One day he thought in his mind that he should meet the prostitute who had freed him from the womb of a bull. The Brahmin went to the house of the prostitute and said, do you recognize me?

The prostitute said, I do not know who you are. Then she said that I am the same bull to whom you had given your virtues. Then I was freed from the womb of a bull. Now I am born in a Brahmin's house. Tell me your virtues? The prostitute said that I have not done any virtue, but I have a parrot in my house. He reads something every morning. I listen to his words, I have given you the fruits of that virtue.

Then the Brahmin asked the parrot what he reads in the morning. The parrot said, I was a Brahmin's son in my previous life. My father used to recite the first chapter of the Gita to me. One day I asked my Guru what he had taught me. Then the Guru cursed me to become a parrot. After this I became a parrot. One day a hunter caught me and a Brahmin bought me. That Brahmin also used to teach the Gita to his son. Then I also learnt this lesson. That day thieves broke into the Brahmin's house. They did not get the money but they took my cage. This prostitute was his friend. She brought me to her. So I recite the first chapter of the Gita every morning. Which this prostitute listens to. But this prostitute does not understand. What I read, this prostitute gave it to you. That was the fruit of the first chapter of Shri Gita. Then the Brahmin said, "Hey parrot, you are also a Brahmin, may you be blessed by my blessings." So, O Lakshmi! As soon as the Brahmin said this, the parrot also attained salvation. Then the prostitute left bad deeds, adopted good deeds and started reciting the first chapter of Shri Geeta after taking a bath daily, due to which she also attained salvation.






ब्राह्मण भोज कब से शुरू हुआ❓️When did Brahmana Bhoj start

 Read in English after the Hindi version 

ब्राह्मण भोज कब से शुरू हुआ❓️

Story courtesy : Pandit Ajay Sharma Ajay on FB

विष्णु पुराण में एक कथा लेख मिलता है एक समय सभी ऋषियों की एक पंचायत हुई जिसमें यह निर्णय करना था की यज्ञ का भाग तीनों देवों में से किसको दिया जाए । 



प्रथम परीक्षा लेने के लिए भृगु मुनि को चुना गया भृगु मुनि ने भगवान शंकर को जाकर प्रणाम किया तो शंकर जी उन्हें गले मिलने के लिए खड़े हुए मुनि ने मना कर दिया कि आप अघोरी हो,मुर्दे की भस्म लगाते हो। हम आपसे गले नहीं मिल सकते भगवान शंकर क्रोधित हो गए ।

फिर भृगू मुनि अपने पिता के यहां गए तो अपने पिता ब्रह्मा जी को प्रणाम नहीं किया ब्रह्मा जी भी कुपित हो गए कितना उद्दंड बालक है, पिता को प्रणाम नहीं करता।

भृगु मुनि बैकुंठ धाम गए तो भगवान विष्णु सो रहे थे तो सोते हुए विष्णु की छाती में लात  मारी। भगवान विष्णु ने ब्राह्मण का चरण पकड़ा और कहा ब्राह्मण देव आपका चरण बड़ा कोमल है मेरी छाती बड़ी कठोर है आपको कहीं लगी तो नहीं प्रभु?

 मुनि ने तुरंत भगवान विष्णु के चरण छुए और क्षमा याचना करते हुए कहा प्रभु यह एक परीक्षा का भाग था जिसमें हमें यह चुनना था कि किसे यज्ञ का प्रथम भाग दिया जाए तो सर्वसम्मति से आपको चुना जाता है। तब भगवान विष्णु ने कहा कि जितना में यज्ञ तपस्या से प्रसन्न नहीं होता उतना में ब्राह्मण को भोजन कराए जाने से होता हूं ।

भृगु जी ने पूछा महाराज ब्राह्मण के भोजन करने से आप तृप्त कैसे होते हैं तो विष्णु भगवान ने कहा ब्राह्मण को जो आप दान देते हैं या जो भोजन कराते हैं एक तो वह सात्विक प्रवृत्ति के होते हैं । वेद अध्ययन वेद पठन करने  ब्राह्मण ही मुझे, ब्रह्मा और महेश तीनों का ज्ञान समाज को कराते हैं ।

हर अंग का कोई ना कोई देवता है जैसे आंखों के देवता सूरज, जैसे कान के देवता वसु,जैसे त्वचा के देवता वायु देव, मन के देवता इंद्र वैसे ही आत्मा के रूप में मैं भी वास करता हूं।

 ब्राह्मण भोजन करके तृप्ति की अनुभूति करें तो वह तृप्ति ब्राह्मण के साथ मुझे और उन देवताओं को भी प्रत्यक्ष भोग लगाने के समान है ।

जो आहुति हम यज्ञ कुंड में देते हैं स्वाहा कहकर,ठीक उसी प्रकार की आहुति ब्राह्मण के मुख में लगती है इसलिए यह परंपरा ऋषियों ने प्रारंभ की की कोई भी धार्मिक कार्य हो तो ब्राह्मण को भोजन कराया जाए जिससे प्रत्यक्ष लाभ मिले।

 कहते हैं ना आत्मा सो परमात्मा। हमारे पूजा पाठ हवन इत्यादि का फल तभी हमें मिलता है जब परमात्मा प्रसन्न होता है। आस्तिक मनसे किया हुआ पुण्य दान अवश्य फलता है और सात्विक वृत्ति वाले को ही दान पुण्य भोजन कराना चाहिए। हर पूजा-पाठ के उपरांत दक्षिणा और भोज अवश्य कराना चाहिए। यह आपकी यथाशक्ति पर निर्भर है। अगर ब्राह्मण सात्विक वृत्ति का है, आप जो भी उसे दोगे,जो भी खिलाओगे उसी से प्रशन्न हो जाएगा।

विप्राणा्म भोजनौ तुष्यंति मयूरं घन गर्जिते ।

 साधवा पर संपत्तौ खल़़ःपर विपत्ति सू ।।

आप चाहे गरीबों को भोजन कराएं चाहे गौ माता को भोजन कराएं या ब्राह्मण को भोजन कराएं मतलब आत्मा की तृप्ति से है सामने वाले की आत्मा तृप्त तो परमात्मा प्रसन्न है।

ENGLISH VERSION 

When did Brahman Bhoj start ?

There is a story written in Vishnu Puran that once all the sages had a Panchayat in which it was to be decided which of the three Gods should be given the share of the Yagya.

Bhrigu Muni was chosen to take the first test. Bhrigu Muni went and bowed to Bhagwan Shankar. Shankar ji stood up to hug him. Muni refused saying that you are an Aghori, you apply the ashes of dead people. I cannot hug you. Bhagwan Shankar got angry.

Then when Bhrigu Muni went to his father's place, he did not bow to his father Brahma ji. Brahma ji also got angry saying what an unruly boy he is, he does not bow to his father.

When Bhrigu Muni went to Vaikunth Dham, bhagwan Vishnu was sleeping. He kicked bhagwan Vishnu in his chest while he was sleeping. Bhagwan Vishnu caught the feet of the Brahmin and said, Brahmin Dev, your feet are very soft, my chest is very hard, did it hurt you anywhere, Prabhu?

 The sage immediately touched the feet of bhagwan Vishnu and begged for forgiveness and said, "Prabhu, this was a part of a test in which we had to choose who should be given the first part of the yagya and you are unanimously chosen." Then bhagwan Vishnu said that I am not as pleased with yagya and penance as I am with feeding a Brahmin.

Bhrigu Ji asked Maharaj how do you get satisfied by eating food of Brahmins, then Lord Vishnu said that the donations or food you give to Brahmins are of Satvik nature. Only Brahmins who study Vedas impart knowledge of me, Brahma and Mahesh to the society.

Every organ has some deity like Sun is the deity of eyes, Vasu is the deity of ears, Vayu is the deity of skin, Indra is the deity of mind, similarly I also reside in the form of soul.

If Brahmins feel satisfied after eating food, then that satisfaction is like offering food directly to me and those deities along with the Brahmin.

The oblation that we give in the yagya kund by saying Swaha, the same kind of oblation is applied in the mouth of the Brahmin, that is why the sages started this tradition that if there is any religious work, then food should be given to Brahmins so that they get direct benefit.

It is said that soul is God. We get the fruit of our worship, rituals, havan etc. only when God is pleased. Charity done with a religious mind is sure to bear fruits and charity and food should be offered only to those with a Satvik nature. Dakshina and bhojan should be offered after every puja-paath. It depends on your capacity. If the Brahmin is of a Satvik nature, he will be pleased with whatever you give him and whatever you feed him.

विप्राणा्म भोजनौ तुष्यंति मयूरं घन गर्जिते ।

 साधवा पर संपत्तौ खल़़ःपर विपत्ति सू ।।

Whether you feed the poor, feed the mother cow or feed the Brahmin, it means that the person's soul is satisfied and God is pleased.


Sunday, September 22, 2024

Neera Arya The 1st spy of India निरा आर्य, भारत की पहली गुप्तचर

Read the article in English below the Hindi story 

Courtsey : तहक्षी™ on X  On Sep 22  • 5 min read 

जेलर ने पूछा, सुभाष चंद्र बॉस कहा हैं ?



उसने जवाब दिया मेरे हृदय में !

ग़ुस्से में जेलर ने ब्रेस्ट रिपर से उस बहादुर भारत की बेटी का एक स्तन काट दिया।

यह कहानी हैं भारत की सबसे पहली महिला गुप्तचर (जासूस) नीरा आर्या की !

 यह नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में रानी झांसी रेजीमेंट की सिपाही थीं। इन्होंने अंग्रेजों के सामने कई बार जासूसी की और सफल रहीं। देश के स्वतंत्रता के लिए इतनी दृढ़ इच्छाशक्ति थी के उन्होंने वीर स्वतंत्र सेनानी नेताजी बोस को बचाने के लिए स्वयं के पति जो ब्रिटिश सरकार के लिए काम करते थे, उनकी हत्या कर दी । 




🔹नीरा आर्या बहुत कम उम्र में ही आजाद हिंद फौज में रानी झांसी रेजीमेंट की सिपाही बन गई थीं। जब वे गुप्तचर थी तब उनको निर्देश था, यदि अंग्रेजों की पकड़ में आ जाएं तो बिना सोचे-समझे स्वयं को गोली मार कर वीरगति को प्राप्त कर लें। वह हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली के साथ अन्य भारतीय भाषाएं भी बोल लेती थीं। इनके पति सीआईडी इंस्पेक्टर श्रीकांत जयरंजन दास अंग्रेजों के लिए काम करते थे और तथा अंग्रेजों के प्रति अति निष्ठावान थे। 

🔹एक दिन अंग्रेजों ने श्रीकांत जयरंजन को नेताजी सुभाषचंद्र बोस को मारने की जिम्मेदारी दी। जयरंजन दास खुफिया तरीके से किसी तरह सुभाषचंद्र बोस के पास जा पहुंचे। वह उन्हें मारने ही वाले थे कि उनकी पत्नी नीरा ने उन्हें पहचान लिया। इससे पहले कि वह नेताजी को अपनी गोली का शिकार बनाते, नीरा ने तुरंत संगीन अपने पति जयरंजन दास के पेट में घोंप दी और उसे मौत के घाट उतार दिया तथा निरा ने नेताजी को बचा लिया। नीरा की वीरता और त्याग देखकर नेताजी दंग रह गए। 



🔹आजाद हिंद फौज के समर्पण के बाद नीरा को पति की हत्या के आरोप में काले पानी की सजा सुनाई गई। वहां उन्हें घोर यातनाएं दी गईं। यहां उन्हें एक छोटी सी कोठरी में रखा जाता. जहां सूर्य की किरण भी ना आती हो ऐसी कोठरी में लोहे की जंजीरों में बांधकर रखा गया, लगातार उनके साथ बदसलूकी की जाती रही। 

🔹एक दिन जेलर ने उनसे पूछा, ‘अगर तुम यह बता दो कि नेताजी कहां हैं तो हम तुम्हें छोड़ देंगे।’ लेकिन उन्होंने किसी भी हालत में अपना मुंह नहीं खोला। नेताजी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए उन पर बर्बर अत्याचार किए गए। लोहे की सलाखों से उनके शरीर को दागा गया, लेकिन वे यातनाएँ सहती रही ! 

🔹नेता जी की मृत्यु प्लेन क्रैश में हुई थी, फिर भी अंग्रेजों को यह विश्वास नहीं था कि नेता जी की मृत्यु हुई हैं । अंग्रेजों को नेता जी बहुत डर था इसी लिए अंग्रेज नीरा से पूछते थे कि सुभाष चंद्र बोस कहां छिपे हुए हैं ? निरा बोलतीं थी उनकी तो हवाई दुर्घटना में मौत हो गई है, ये बात पूरी दुनिया जानती है। परंतु अंग्रेज सरकार नेता जी की मृत्यु को स्वीकार नहीं कर पा रही थी। निरा को जानकारी देने के बदले जमानत देने तक का लालच दिया जाता। लेकिन उन्होंने निरा ने नेता जी के संदर्भ में या आज़ाद हिन्द फ़ौज के अन्य साथी यो के संदर्भ में कभी कुछ नहीं बोला । 

🔹अंग्रेजो के जेलर द्वारा बार बार नेताजी कहा हैं? कहा हैं ? पूछने पे निरा बोलती थी नेता जी मेरे हृदय में हैं, यह सुन कर एक दिन जेलर ने गुस्से में कहा कि ठीक है हम तुम्हारे दिल को चीरकर निकालकर देखेंगे कि नेताजी कहां हैं ? 


🔹जेलर ने एक लोहार को इशारा किया. वो ब्रेस्ट रिपर लेकर आया और उनके दाएं स्तन को दबाकर काटने लगा. उनका एक स्तन काट दिया गया. भारत की बेटी असह्य पीड़ा में तड़पती रही। जेलर ने कहा यदि कभी वापिस बोला सुभाष मेरे हृदय में हैं तो ये दूसरा स्तन भी काट दिया जाएगा . जब देश आजाद हुआ, तब नीरा आर्या जेल से बाहर आईं. दुर्भाग्य से इतनी बड़ी वीरांगना को हैदराबाद में फूल बेचकर अपना गुजारा करना पड़ा. (सरकार से कोई सहायता नहीं मिली क्योंकि नेहरू ने कभी आज़ाद हिन्द फ़ौज को पसंद नहीं किया था)

साल 1998 में उनका निधन हुआ था. उन्होंने अपने जीवन पर एक किताब भी लिखी, जिसका नाम- मेरा जीवन संघर्ष है.


The jailor asked, where is Subhash Chandra Bose?

She replied, in my heart!

In anger, the jailor cut off one breast of that brave daughter of India with a breast ripper.

This is the story of India's first female spy Neera Arya!

She was a soldier of Rani Jhansi Regiment in Netaji Subhash Chandra Bose's Azad Hind Fauj. She spied many times in front of the British and was successful. She had such a strong will for the independence of the country that she killed her own husband, who worked for the British government, to save the brave freedom fighter Netaji Bose.

🔹Neera Arya became a soldier of Rani Jhansi Regiment in Azad Hind Fauj at a very young age. When she was a spy, she was instructed that if she gets caught by the British, she should shoot herself without thinking and attain martyrdom. She spoke Hindi, English and Bengali as well as other Indian languages. Her husband, CID Inspector Shrikant Jayaranjan Das, worked for the British and was extremely loyal to them. 

🔹One day the British gave the responsibility of killing Netaji Subhash Chandra Bose to Shrikant Jayaranjan. Jayaranjan Das somehow reached Subhash Chandra Bose secretly. He was about to kill him when his wife Nira recognized him. Before he could shoot Netaji, Nira immediately stabbed her husband Jayaranjan Das in the stomach with a bayonet and killed him. Nira saved Netaji. Netaji was stunned to see the valor and sacrifice of Nira.

🔹After the surrender of Azad Hind Fauj, Neera was sentenced to black water for the murder of her husband. She was given severe torture there. Here she was kept in a small cell. She was kept tied in iron chains in a cell where even the rays of the sun did not reach, she was constantly mistreated. 

🔹One day the jailor asked her, 'If you tell us where Netaji is, we will release you.' But she did not open her mouth under any circumstances. She was brutally tortured to get information about Netaji. Her body was branded with iron bars, but she kept tolerating the torture! 

🔹Netaji died in a plane crash ( disputed), yet the British did not believe that Netaji had died. The British were very afraid of Netaji, that is why the British used to ask Nira where Subhash Chandra Bose was hiding? Nira used to say that he died in an air crash, the whole world knows this. But the British government was not able to accept Netaji's death. Nira was even offered bail in exchange for providing information. But Nira never said anything about Netaji or other comrades of Azad Hind Fauj.

🔹When the British jailor repeatedly asked her where Netaji was, Nira used to say that Netaji was in her heart. Hearing this, one day the jailor angrily said that okay, we will rip out your heart and see where Netaji was. 

🔹The jailor signaled a blacksmith. He brought a breast ripper and started cutting her right breast by pressing it. One of her breasts was cut off. The daughter of India kept on suffering in unbearable pain. The jailor said that if she ever says again that Subhash is in her heart, then this other breast will also be cut off. When the country became independent, Nira Arya came out of jail. Unfortunately, such a great warrior had to make a living by selling flowers in Hyderabad. (She did not get any help from the government because Nehru never liked the Azad Hind Fauj)

She died in the year 1998. She also wrote a book on her life, whose name is- Mera Jeevan Sangharsh.



Sunday, September 15, 2024

Baji Rout. The 12 year old martyr from Odisha. बाजी राउत - ओडिशा का 12 वर्षीय हुतात्मा।

 


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The famous Indian poet Sachidananda Routray, winner of the Jnanpith Award, wrote a poem about Baji Rout. The first line of the poem reads,

It is not a pyre, O Friends! When the country is in dark despair, it is the light of our liberty. It is our freedom-fire.”

Baji Rout who was martyred on 12 October 1938 at the age of 12 only while peacefully resisting the British troop to cross the river in his village by denying them the ferryboat, is the youngest in the history of freedom struggle in India to gain martyrdom.


The late 1930s witnessed an intensification of the Prajamandal Movement in most of the princely states in Odisha which was well supported and sympathized by Congress. After the formation of the Congress government in Odisha in 1937, they extended full support and encouragement to the movement. 

Dhenkanal was one of the states which drew the maximum attention of the Congress workers because of the inhuman repression of king Shankar Pratap singh deo to the agitators. But the people instead of being bogged down came more and more to the street to protest against numerous taxes imposed by the king. More than fifty thousand people gathered in Dhenkanal Garh and surrounded the royal palace on 12 September 1938. 

The Praja Mandal leaders advised the people to organize the movement in a disciplined manner and convinced them to return to their homes. 

But the king on the other hand collected 200 armed forces from the neighbouring states who were sympathetic to him. Besides, on 20 September, a contingent of 200 European troops also arrived at Dhenkanal to suppress the movement.

The Prajamandal committee of Dhenkanal formed a group called ‘Banara Sena’ to carry out and implement various decisions and orders of the committee. Baji’s two brothers along with the entire village were members of this organization. As a child, Baji was also the witness to many atrocities of the police and government officials in his village and felt the economic exploitation of the king. It is said that once his mother refused him salt in his lunch because of the high taxation imposed on it. On his subconscious level, Baji, therefore, developed hatred and anger for the king in his childhood.

Meanwhile, the troops unleashed a reign of terror in various villages in Dhenkanal. More than sixty villages were raided by the armed police who brutally beat and killed villagers, raged their houses to the ground, looted their properties, raped the women, and forced the people to sign a declaration of loyalty to the king at gunpoint. 

Village Bhuban was the epic center of the Prajamandal movement where on 10 October a troop led by magistrate Binay Ghosh arrested a few protesters and shot two villagers dead. Then on their way to Dhenkanal with the arrested villagers at midnight on 11 October, they tried to cross over river Brahmani in Nilakanthapur village where the village’s Banarsena group receiving the news in advance by the Prajamandal leaders rushed to the over-flown river to stop them ferry service by detaining the village boat. Therefore at the dawn of 12 October 1938, a scuffle arose between the police and the villagers as the police tried to snatch the boat from them. Nearly a dozen of villagers including Baji and his brother held back the boat to deny the police to ferry the river. 

The British police pointed their guns at Baji and told him to get them to the boat quickly. Baji Raot said,

This boat of mine belongs to the Praja Mandal. It cannot be hired out to you — the enemy of the people.”

The boy’s words shocked the British police. This response was unexpected. He was aggressively shaken by a British policeman and hit head with his big gun butt. They kept ordering him to ferry them across. But not long after that, Baji Rout sprang to his feet, leaped to the edge of the river, and began shouting loudly and frequently for his pals to join him. The inhabitants of the village were roused from their sleep. Soon after, members of the Praja Mandal arrived at the location.

The police thereafter opened fire at them in which six persons including Baji were killed besides injuring a few others. The dead bodies of all those six killed instead of being handed over to the police for post-mortem were held back by the Prajamandal leaders and taken to Cuttack in a procession where they were kept for the glimpse of the public. A mass procession accompanied these six bodies to the crematorium which created a wave of anger among the people. The killing of Baji became a sensation in Odisha and he became a legend.


ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध भारतीय कवि सचिदानंद राउतराय ने बाजी राउत के बारे में एक कविता लिखी है। कविता की पहली पंक्ति है,

“यह कोई चिता नहीं है, हे मित्रों! जब देश अंधकारमय निराशा में है, यह हमारी स्वतंत्रता की ज्योति है। यह हमारी स्वतंत्रता की अग्नि है।”

बाजी राउत जो 12 अक्टूबर 1938 को मात्र 12 वर्ष की आयु में अपने गांव में नदी पार करने के लिए ब्रिटिश सेना को नाव से मना करके शांतिपूर्ण तरीके से विरोध करते हुए शहीद हो गए थे, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में शहीद होने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति हैं।

1930 के दशक के उत्तरार्ध में ओडिशा की अधिकांश रियासतों में प्रजामंडल आंदोलन तेज हो गया था, जिसे कांग्रेस का भरपूर समर्थन और सहानुभूति प्राप्त थी। 1937 में ओडिशा में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद, उन्होंने आंदोलन को पूरा समर्थन और प्रोत्साहन दिया। ढेंकनाल उन राज्यों में से एक था, जिसने राजा शंकर प्रताप सिंह देव के आंदोलनकारियों पर अमानवीय दमन के कारण कांग्रेस कार्यकर्ताओं का सबसे अधिक ध्यान आकर्षित किया था। लेकिन लोग घबराने के बजाय राजा द्वारा लगाए गए असंख्य करों के विरोध में सड़कों पर अधिक से अधिक संख्या में आए। 12 सितंबर 1938 को ढेंकनाल गढ़ में पचास हजार से अधिक लोग एकत्र हुए और शाही महल को घेर लिया। प्रजा मंडल के नेताओं ने लोगों को अनुशासित तरीके से आंदोलन आयोजित करने की सलाह दी और उन्हें अपने घरों को वापस जाने के लिए राजी किया। 

दूसरी ओर राजा ने अपने प्रति सहानुभूति रखने वाले पड़ोसी राज्यों से 200 सशस्त्र बलों को इकट्ठा किया। इसके अलावा, 20 सितंबर को 200 यूरोपीय सैनिकों की एक टुकड़ी भी आंदोलन को दबाने के लिए ढेंकनाल पहुंची।

ढेंकनाल की प्रजामंडल समिति ने समिति के विभिन्न निर्णयों और आदेशों को लागू करने के लिए 'बानरा सेना' नामक एक समूह का गठन किया। बाजी के दो भाई और पूरा गांव इस संगठन के सदस्य थे। बचपन में बाजी ने अपने गांव में पुलिस और सरकारी अधिकारियों के कई अत्याचारों को भी देखा और राजा के आर्थिक शोषण को महसूस किया। ऐसा कहा जाता है कि एक बार उनकी माँ ने उन्हें खाने में नमक देने से मना कर दिया था क्योंकि उस पर बहुत ज़्यादा कर लगाया गया था। इसलिए बाजी के अवचेतन मन में बचपन में ही राजा के प्रति नफ़रत और गुस्सा पैदा हो गया था।

इस बीच, सैनिकों ने ढेंकनाल के विभिन्न गांवों में आतंक का राज फैला दिया। साठ से ज़्यादा गांवों पर सशस्त्र पुलिस ने छापा मारा, ग्रामीणों को बेरहमी से पीटा और मार डाला, उनके घरों को तहस-नहस कर दिया, उनकी संपत्ति लूट ली, महिलाओं के साथ बलात्कार किया और बंदूक की नोक पर लोगों से राजा के प्रति वफ़ादारी की घोषणा पर हस्ताक्षर करवाए।

भुबन गांव प्रजामंडल आंदोलन का महाकाव्य केंद्र था, जहां 10 अक्टूबर को मजिस्ट्रेट बिनय घोष के नेतृत्व में एक टुकड़ी ने कुछ प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया और दो ग्रामीणों की गोली मारकर हत्या कर दी। फिर 11 अक्टूबर की आधी रात को गिरफ्तार ग्रामीणों के साथ ढेंकनाल जाते समय उन्होंने नीलकंठपुर गांव में ब्राह्मणी नदी पार करने की कोशिश की, जहां गांव के बनारसेना समूह को प्रजामंडल नेताओं द्वारा पहले से खबर मिलने पर वे गांव की नाव को रोककर नौका सेवा रोकने के लिए उफनती नदी पर पहुंचे। 

इसलिए 12 अक्टूबर 1938 की भोर में पुलिस और ग्रामीणों के बीच हाथापाई हुई क्योंकि पुलिस ने उनसे नाव छीनने की कोशिश की। बाजी और उनके भाई सहित लगभग एक दर्जन ग्रामीणों ने पुलिस को नदी पार करने से रोकने के लिए नाव को रोक दिया।

ब्रिटिश पुलिस ने बाजी पर बंदूकें तान दीं और उसे जल्दी से नाव पर ले जाने को कहा।

 बाजी राओत ने कहा, "यह मेरी नाव प्रजा मंडल की है। इसे तुम्हें किराए पर नहीं दिया जा सकता - तुम जनता के दुश्मन हो।"

लड़के के शब्दों ने ब्रिटिश पुलिस को चौंका दिया। यह प्रतिक्रिया अप्रत्याशित थी। उसे एक ब्रिटिश पुलिसकर्मी ने आक्रामक तरीके से हिलाया और अपनी बड़ी बंदूक की बट से उसके सिर पर वार किया। वे उसे नाव से नदी पार करने का आदेश देते रहे। लेकिन कुछ ही देर बाद, बाजी राउत अपने पैरों पर खड़ा हो गया, नदी के किनारे कूद गया और अपने दोस्तों को अपने साथ आने के लिए जोर-जोर से चिल्लाने लगा। गाँव के निवासी अपनी नींद से जाग गए। कुछ ही देर बाद, प्रजा मंडल के सदस्य उस स्थान पर पहुँच गए। इसके बाद पुलिस ने उन पर गोलियाँ चलाईं जिसमें बाजी सहित छह लोग मारे गए और कुछ अन्य घायल हो गए। मारे गए सभी छह लोगों के शवों को पोस्टमार्टम के लिए पुलिस को सौंपने के बजाय प्रजामंडल के नेताओं ने रोक लिया और एक जुलूस के रूप में कटक ले गए जहाँ उन्हें जनता के दर्शन के लिए रखा गया। इन छह शवों के साथ एक सामूहिक जुलूस श्मशान घाट तक पहुँचा, जिससे लोगों में आक्रोश की लहर दौड़ गई। बाजी की हत्या ओडिशा में सनसनी बन गई और वे एक किंवदंती बन गए।


Wednesday, September 11, 2024

Puranic birth story of Radha Rani राधा रानी के जन्म की पौराणिक कथा

Read the English story below the Hindi version



राधा के जन्म के बारे में पुराणों में एक कथा का उल्लेख है। राधा को देवी लक्ष्मी का अवतार माना जाता है। भगवान विष्णु के श्री कृष्ण के रूप में जन्म लेने से पहले देवी लक्ष्मी पृथ्वी पर जन्म लेने से हिचकिचा रही थीं। भगवान विष्णु ने उन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन वह भगवान विष्णु के वैकुंठ लोक में रहते हुए पृथ्वी पर प्रकट नहीं होना चाहती थीं। अंत में वह इस शर्त पर मान गईं कि जन्म के बाद वह पहली बार तभी अपनी आंखें खोलेंगी जब कृष्ण उनके सामने प्रकट होंगे। भगवान विष्णु ने यह शर्त मान ली। पृथ्वी पर उनके प्रकट होने का दिन राधाष्टमी के नाम से जाना जाता है।


भाद्र मास की अमावस्या की रात्रि में वृषभानु महाराज दोपहर के समय स्नान करने के लिए यमुना नदी के तट पर गए। उस समय उन्होंने जल पर एक विशाल कमल देखा, जिसमें से एक हजार सूर्यों के समान स्वर्णिम आभा निकल रही थी। जब वृषभानु कमल के पास गए, तो उन्होंने कमल की पंखुड़ियों के बीच एक बच्ची का अत्यंत सुंदर और तेजस्वी रूप देखा। बच्ची को देखकर विशभानु प्रसन्न हुए और उसे अपने घर ले गए। उनकी पत्नी कीर्तिदा ने सुंदर बच्ची को देखकर प्रसन्न होकर तुरंत सभी प्रकार के धार्मिक अनुष्ठानों की व्यवस्था की और ब्राह्मणों को हजारों गायें दान कीं। उन्होंने और उनकी पत्नी ने बच्ची का नाम राधा रखा।

जल्द ही उन्होंने देखा कि राधा अपनी आँखें नहीं खोल रही है। वृषभानु और उनकी पत्नी को डर था कि उनकी बच्ची शायद जन्म से अंधी है। उस समय नारद मुनि प्रकट हुए और उन्हें एक भव्य जन्म उत्सव की व्यवस्था करने तथा रावल और गोकुल के सभी निवासियों और विशेष रूप से अपने प्रिय मित्र नंद महाराज और उनके परिवार को निमंत्रण भेजने की सलाह दी।


उत्सव के दिन, मेहमान इकट्ठे हुए और सभी बहुत खुश थे। नन्द महाराज (कृष्ण के पिता), यशोदा (कृष्ण की माँ) और रोहिणी (बलराम की माँ) भी छोटे कृष्ण और बलराम के साथ पहुँचे। यशोदा अपनी सबसे अच्छी दोस्त कीर्तिदा से मिलीं और उन्हें इतनी सुंदर बच्ची होने पर बधाई दी। इस बीच, शिशु कृष्ण अपने हाथों और घुटनों के बल आँगन में रेंग रहे थे। वह रेंगते हुए उस खाट तक पहुँचे जिस पर राधिका लेटी हुई थीं और खुद को ऊपर खींचकर अंदर देखा और उनकी नज़र शिशु राधिका के सुंदर चाँद जैसे चेहरे पर पड़ी। उस समय, श्रीमती राधारानी की आँखें फड़फड़ा उठीं और चौड़ी हो गईं और पहली बार कमल की तरह खिल गईं और सीधे कृष्ण को देखा, जो पहले व्यक्ति थे जिन्हें उन्होंने कभी देखा था। ऐसा लगता है कि वह इस दुनिया में कुछ भी नहीं देखना चाहती थीं, केवल श्रीकृष्ण का रूप देखना चाहती थीं


 There’s a story mentioned in the Puranas about the birth of Radha, the eternal consort of Shri Krishna. Radha is considered to be an incarnation of Goddess Lakshmi. Goddess Lakshmi was hesitant to take birth on Earth before the birth of Lord Vishnu as Shri Krishna. Lord Vishnu tried to convince her but she didn’t want to appear on Earth while Vishnu was still in Vaikuntha Lok. She finally agreed upon the condition that after her birth, she will open her eyes for the first time only when Krishna appears before her. Vishnu agreed to this condition. The day of her appearance on the Earth is known as Radhashtami.



On a half-moon night in the month of Bhadra, Vrishabhanu Maharaja went to the bank of the river Yamuna at around noon to take a midday bath. At that moment he saw a huge lotus floating on the water with a golden aura as bright as a thousand suns emanating from it. When Vrishabhanu went closer to the lotus, he saw the most beautiful and radiant form of a baby girl lying within the petals of the lotus. Vishabhanu was happy to see the baby girl and took her home. His wife Kirtida was delighted when she saw the beautiful baby and immediately arranged for all kinds of religious rites to be performed and donated thousands of cows to the Brahmanas. He and his wife named the baby girl Radha.




Soon they noticed that Radha is not opening her eyes. Vrishabhanu and his wife feared that their baby girl was perhaps blind from birth. At that time, Narada Muni appeared and advised him to make arrangements for a lavish birth celebration and send out invitations to all the residents of Raval and Gokula and especially to his dear friend Nanda Maharaja and his family.



On the day of the celebration, the guests assembled and everyone was very happy. Nanda Maharaj(Krishna’s father), Yashoda(Krishna’s mother) and Rohini(Balaram’s mother) also arrived along with little Krishna and Balaram. Yashoda met with her best friend Kirtida and congratulated her on having such a beautiful baby girl. Meanwhile, baby Krishna was crawling around the courtyard on his hands and knees. He crawled up to the cot in which Radhika was lying and pulled Himself up and looked in and His gaze fell upon the beautiful moon-like face of baby Radhika. At that moment, Srimati Radharani’s eyes fluttered and opened wide and blossomed like lotuses for the very first time and looked directly at Krishna, who was the first person that She had ever seen. It seems that she did not want to see anything of this world, only the form of Sri Krishna. Vrishabhanu and Kirtida were overjoyed to find out that their beloved daughter Radhika, was not blind after all. Everyone was delighted.

Thursday, September 5, 2024

The Twenty-Four Siddhis

 The Twenty-Four Siddhis

1. Anima (अणिमा): The power to shrink one's body to an atomic size, allowing for:

- Entering tiny spaces

- Escaping danger

- Witnessing subtle realms


2. Mahima (महिमा): The ability to expand one's body to an immense size, enabling:

- Overwhelming opponents

- Reaching distant places

- Manifesting divine presence


*3. Laghima (लघिमा)*: The power to transcend gravity, allowing for:

- Levitation

- Flight

- Walking on water


*4. Vashita (वशिता)*: Control over the elements (earth, water, fire, air, space), enabling:

- Manipulating natural forces

- Summoning elemental energies

- Protecting oneself from natural disasters


*5. Anumitva (अनुमित्व)*: Conquest over hunger and thirst, granting:

- Freedom from physical needs

- Enhanced endurance

- Spiritual detachment


*6. Manojava (मनोजव)*: The ability to move the body rapidly through time and space as fast as thoughts move

 allowing for:

- Teleportation

- Instant travel

- Cosmic exploration


*7. Prapti (प्राप्ति)*: The power to attain or acquire anything, granting:

- Manifestation of desires

- Access to hidden knowledge

- Acquisition of spiritual powers


*8. Prakamya (प्राकाम्य)*: The ability to fulfill desires and create reality, enabling:

- Manifesting thoughts into reality

- Healing and transformation

- Cosmic creation


9. KAMRUPA (कामरूप): The power to acquire any form desired.

Benefits:

- Shape-shifting for various purposes (e.g., disguise, adaptation)

- Mastery over physical transformation

- Freedom from physical limitations


10. SVACCHAND MRITYU (स्वच्छंद मृत्यु): The ability to choose the time of natural death, leaving the body with free will and full consciousness.

Benefits:

- Control over life span

- Awareness of impending death

- Liberation from fear of death


11. ADVANDVATVA (अद्वंद्वत्व):  The power to remain immune from the vagaries of weather, such as heat and cold.

Benefits:

- Resistance to extreme temperatures

- Mastery over bodily sensations

- Freedom from environmental influences


Attaining these siddhis requires:

- Intensive meditation and spiritual practice

- Mastery over the mind and body

- Realization of the true nature of reality

These abilities demonstrate the potential for human transformation and liberation from physical limitations.


DUR-SHRAVANA the ability to hear from any distance.

DUR-DARSHANA the ability to see far distances.

DEVKRIDA DARSHAN the ability to see the astral world.

YATHASAMKALPA the ability to fulfil every wish at once.

TRIKALDARSHITVA unlimited knowledge of past, present and future.

YATHA KAMAVASTHAYITVA the ability to materialise objects.

PRAKAMYA the ability to overcome all obstacles caused by the

five elements.

AGNYADISTAMBHANA mastery over fire, water, air, poison etc.

PARKAYA PRAVESHA the ability to enter another body.

APRATIHATA GATI the ability to reach any place desired.

PARACHITTA ABHIGYATA telepathy and knowing another's mind.

APARAJAYA invincibility.

DURDARSHITA the possession of all Divine powers, with the exception of the power to create and dissolve the Universe.

Varahamihira's Lunar Prophecy वराहमिहिर की चंद्र भविष्यवाणी

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#Astronomy



Varahamihira's Lunar Prophecy

How did he do this then? 

Varahamihira, also known as Varaha or Mihira, was born in Ujjain in 505 CE. 

He was a philosopher, astronomer, and mathematician from India who wrote the Pancha-siddhantika (“Five Treatises”), a collection of Greek, Egyptian, Roman, and Indian astronomy and  predicted water on the Moon in his groundbreaking book in 550 CEA

In the chapter "Graha-laghava," he declared:

"Somewhere on the Moon, there is a region of water, visible to the naked eye."

1400 years later, India's Chandrayaan mission confirmed his astonishing foresight by finding water on the Moon.

He also described the Moon's "dark spots" as "like seas."

Surya Siddhanta, an astronomical book that describes or determines the real movements of the luminaries, is included in Panchasiddhantika. Varhamihira has also described the estimated diameters of planets such as Mercury, Venus, Mars, Saturn, and Jupiter in this study.

Surya Siddhanta also does calculations on and regarding solar and lunar eclipses, including their colour and part. Aside from the projected diameter of 3,772 miles (which is within 11% of the generally recognised diameter of 4,218 miles), Varhamihira also predicted the presence of water on Mars.

He said that the planet Mars contains both water and iron on its surface, both of which have been confirmed by NASA and ISRO


वराहमिहिर की चंद्र भविष्यवाणी

फिर उन्होंने यह कैसे किया?

वराहमिहिर, जिन्हें वराह या मिहिर के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 505 ई. में उज्जैन में हुआ था।

वे भारत के एक दार्शनिक, खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे, जिन्होंने पंच-सिद्धांतिका (“पाँच ग्रंथ”) लिखी थी, जो ग्रीक, मिस्र, रोमन और भारतीय खगोल विज्ञान का संग्रह था और 550 ई. में अपनी अभूतपूर्व पुस्तक में चंद्रमा पर पानी की भविष्यवाणी की थी

"ग्रह-लघव" अध्याय में उन्होंने घोषणा की:

"चंद्रमा पर कहीं, पानी का एक क्षेत्र है, जो नंगी आँखों से दिखाई देता है।"

1400 साल बाद, भारत के चंद्रयान मिशन ने चंद्रमा पर पानी खोजकर उनकी आश्चर्यजनक दूरदर्शिता की पुष्टि की।

उन्होंने चंद्रमा के "काले धब्बों" को "समुद्र की तरह" भी बताया।

 सूर्य सिद्धांत, एक खगोलीय पुस्तक जो प्रकाशमान ग्रहों की वास्तविक गति का वर्णन या निर्धारण करती है, पंचसिद्धांतिका में शामिल है। वराहमिहिर ने इस अध्ययन में बुध, शुक्र, मंगल, शनि और बृहस्पति जैसे ग्रहों के अनुमानित व्यास का भी वर्णन किया है।

सूर्य सिद्धांत सूर्य और चंद्र ग्रहणों के बारे में भी गणना करता है, जिसमें उनका रंग और भाग भी शामिल है। 3,772 मील के अनुमानित व्यास (जो कि आम तौर पर मान्यता प्राप्त व्यास 4,218 मील के 11% के भीतर है) के अलावा, वराहमिहिर ने मंगल ग्रह पर पानी की उपस्थिति की भी भविष्यवाणी की थी।

उन्होंने कहा कि मंगल ग्रह की सतह पर पानी और लोहा दोनों मौजूद हैं, जिनकी पुष्टि नासा और इसरो ने की है।

Tuesday, September 3, 2024

सम्पूर्ण श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित

 



सम्पूर्ण श्री हनुमान चालीसा अर्थ सहित...

श्री हनुमान चालीसा का पाठ भक्तों को भय, कष्ट और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति दिलाने में सहायक माना जाता है। 

यह चालीसा हनुमान जी की भक्ति और शक्ति का गुणगान करती है, जिससे मनोबल और आत्मविश्वास बढ़ता है। 

नियमित पाठ से जीवन में शांति, समृद्धि, और सुरक्षा की प्राप्ति होती है।


श्री हनुमान चालीसा, दोहा:

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।

बरनऊं रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥

अर्थ:

मैं अपने गुरु के चरणों की धूल से अपने मन रूपी दर्पण को पवित्र करता हूँ और फिर श्री रामचंद्रजी के पवित्र यश का वर्णन करता हूँ, जो चार फल (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) देने वाला है।


बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार।

बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार॥

अर्थ:

हे पवनपुत्र हनुमान जी! मैं आपको स्मरण करता हूँ। मेरी बुद्धि छोटी है, इसलिए मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करें तथा मेरे दुःखों और दोषों का नाश करें।


चौपाई:


1. जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।

जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥

अर्थ:

हे हनुमान जी, आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। आप तीनों लोकों में प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित हैं।


2. राम दूत अतुलित बलधामा।

अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥

अर्थ:

आप श्रीराम के दूत हैं, आपके पास असीमित बल है। आप अंजनी के पुत्र और पवनदेव के नाम से जाने जाते हैं।


3. महावीर विक्रम बजरंगी।

कुमति निवार सुमति के संगी॥

अर्थ:

आप महान वीर और विक्रमशाली हैं, बजरंग (वज्र के समान शरीर वाले) हैं। आप बुरी बुद्धि को दूर करते हैं और अच्छी बुद्धि के साथी हैं।


4. कंचन बरन बिराज सुबेसा।

कानन कुण्डल कुंचित केसा॥

अर्थ:

आपका शरीर सोने के रंग का है, आप सुंदर वस्त्र धारण करते हैं। आपके कानों में कुंडल और घुँघराले बाल शोभायमान हैं।


5. हाथ वज्र औ ध्वजा बिराजे।

काँधे मूँज जनेऊ साजे॥

अर्थ:

आपके हाथ में वज्र और ध्वजा (ध्वज) सुशोभित हैं, और आपके कंधे पर मूँज का जनेऊ शोभायमान है।


6. शंकर सुवन केसरी नंदन।

तेज प्रताप महा जग वंदन॥


अर्थ:

आप शंकर के अवतार और केसरी के पुत्र हैं। आपका तेज और प्रताप महान है, जिससे पूरा जगत आपकी वंदना करता है।


7. विद्यावान गुनी अति चातुर।

राम काज करिबे को आतुर॥

अर्थ:

आप विद्वान, गुणवान और अत्यंत चतुर हैं। आप सदा श्रीराम के कार्य को करने के लिए उत्सुक रहते हैं।


8. प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।

राम लखन सीता मन बसिया॥

अर्थ:

आप भगवान राम के चरित्र सुनने में आनंदित होते हैं, और राम, लक्ष्मण, और सीता के मन में निवास करते हैं।


9. सूक्ष्म रूप धरी सियहिं दिखावा।

विकट रूप धरि लंक जरावा॥

अर्थ:

आपने सूक्ष्म रूप धारण करके सीता को दर्शन दिया और विकट रूप धारण कर लंका को जला दिया।


10. भीम रूप धरि असुर संहारे।

रामचंद्र के काज सवारे॥

अर्थ:

आपने भीम (विशाल) रूप धारण करके राक्षसों का संहार किया और श्रीराम के कार्यों को पूर्ण किया।


11. लाय सजीवन लखन जियाये।

श्रीरघुवीर हरषि उर लाये॥

अर्थ:

आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए, जिससे श्रीराम ने हर्षित होकर आपको गले से लगाया।


12. रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।

तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई॥

अर्थ:

श्रीराम ने आपकी बहुत प्रशंसा की और कहा कि आप मुझे भरत के समान प्रिय हैं।


13. सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।

अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं॥

अर्थ:

श्रीराम ने कहा कि तुम्हारे यश का गान सहस्र मुखों से किया जा सकता है और ऐसा कहते हुए उन्होंने आपको अपने गले से लगाया।


14. सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।

नारद सारद सहित अहीसा॥

अर्थ:

सनक, ब्रह्मा, मुनि, नारद, सरस्वती और शेषनाग आपकी महिमा का गान करते हैं।


15. यम कुबेर दिगपाल जहां ते।

कवि कोविद कहि सके कहां ते॥

अर्थ:

यमराज, कुबेर, और दिशाओं के पालक भी आपकी महिमा का वर्णन नहीं कर सकते। कवि और विद्वान भी आपकी महिमा का पूर्णतः वर्णन नहीं कर सकते।


16. तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।

राम मिलाय राजपद दीन्हा॥

अर्थ:

आपने सुग्रीव पर उपकार किया, उन्हें श्रीराम से मिलाया और उन्हें राजगद्दी दिलवाई।


17. तुम्हरो मंत्र विभीषन माना।

लंकेश्वर भए सब जग जाना॥

अर्थ:

आपके उपदेश को विभीषण ने माना और वे लंका के राजा बने, यह सब जगत जानता है।


18. युग सहस्त्र जोजन पर भानू।

लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥

अर्थ:

आपने सूर्य को हजारों योजन की दूरी पर देखा और उसे मीठा फल समझकर निगल लिया।


19. प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।

जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥

अर्थ:

श्रीराम की अंगूठी को मुख में रखकर आपने समुद्र को पार कर लिया, इसमें कोई आश्चर्य नहीं है।


20. दुर्गम काज जगत के जेते।

सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥

अर्थ:

जगत के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपके अनुग्रह से सरल हो जाते हैं।


21. राम दुआरे तुम रखवारे।

होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥

अर्थ:

आप श्रीराम के द्वार के रक्षक हैं, आपकी अनुमति के बिना कोई भी अंदर नहीं जा सकता।


22. सब सुख लहै तुम्हारी शरना।

तुम रक्षक काहू को डर ना॥

अर्थ:

जो भी आपकी शरण में आता है, उसे सभी सुख प्राप्त होते हैं और जब आप रक्षक हैं, तो किसी को भी डर नहीं हो सकता।


23. आपन तेज सम्हारो आपै।

तीनों लोक हांक ते कांपै॥

अर्थ:

आप अपने तेज को स्वयं ही संभालते हैं, क्योंकि आपके गर्जन से तीनों लोक कांप जाते हैं।


24. भूत पिशाच निकट नहिं आवै।

महावीर जब नाम सुनावै॥

अर्थ:

जब महावीर का नाम लिया जाता है, तो भूत और पिशाच भी पास नहीं आ सकते।


25. नासे रोग हरै सब पीरा।

जपत निरंतर हनुमत बीरा॥

अर्थ:

जो वीर हनुमान का निरंतर जप करते हैं, उनके सभी रोग और पीड़ा नष्ट हो जाती हैं।


26. संकट से हनुमान छुड़ावै।

मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥

अर्थ:

जो मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का ध्यान करते हैं, हनुमान जी उन्हें सभी संकटों से छुड़ा लेते हैं।


27. सब पर राम तपस्वी राजा।

तिनके काज सकल तुम साजा॥

अर्थ:

तपस्वी राजा श्रीराम के सभी कार्यों को आपने सफल बनाया।


28. और मनोरथ जो कोई लावै।

सोइ अमित जीवन फल पावै॥

अर्थ:

जो भी व्यक्ति आपको अपनी इच्छा बताता है, वह अनंत जीवन का फल प्राप्त करता है।


29. चारों युग परताप तुम्हारा।

है प्रसिद्ध जगत उजियारा॥

अर्थ:

चारों युगों में आपका प्रताप है, और आप पूरे जगत में प्रसिद्ध हैं।


30. साधु संत के तुम रखवारे।

असुर निकन्दन राम दुलारे॥

अर्थ:

आप साधु-संतों के रक्षक हैं और असुरों का नाश करने वा

ले तथा श्रीराम के प्रिय हैं।


31. अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।

अस वर दीन्ह जानकी माता॥

अर्थ:

माता जानकी ने आपको आशीर्वाद दिया कि आप अष्ट सिद्धि (आठ प्रकार की सिद्धियाँ) और नौ निधि (नौ प्रकार की धन) के दाता बनें।


32. राम रसायन तुम्हरे पासा।

सदा रहो रघुपति के दासा॥

अर्थ:

आपके पास राम नाम का अमृत है, और आप सदैव श्रीराम के सेवक बने रहते हैं।


33. तुम्हरे भजन राम को पावै।

जनम जनम के दुख बिसरावै॥

अर्थ:

जो भी आपका भजन करता है, उसे श्रीराम की प्राप्ति होती है और उसके जन्म-जन्म के दुख समाप्त हो जाते हैं।


34. अन्त काल रघुबर पुर जाई।

जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई॥

अर्थ:

अंत समय में, श्रीराम की नगरी में जाकर जन्म लेने वाले व्यक्ति को हरि भक्त के रूप में पहचाना जाता है।


35. और देवता चित्त न धरई।

हनुमत सेई सर्व सुख करई॥

अर्थ:

जो हनुमान जी की सेवा करता है, उसे अन्य देवताओं की पूजा की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि हनुमान जी सभी सुखों को देने वाले हैं।


36. संकट कटै मिटै सब पीरा।

जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥

अर्थ:

जो हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सभी संकट कट जाते हैं और सभी पीड़ाएँ दूर हो जाती हैं।


37. जय जय जय हनुमान गोसाई।

कृपा करहु गुरु देव की नाई॥

अर्थ:

हे हनुमान जी! आपकी जय हो, जय हो, जय हो। आप गुरु के समान मुझ पर कृपा करें।


38. जो सत बार पाठ कर कोई।

छूटहि बंदि महा सुख होई॥

अर्थ:

जो व्यक्ति इस चालीसा का सौ बार पाठ करता है, वह सभी बंधनों से मुक्त हो जाता है और महान सुख प्राप्त करता है।


39. जो यह पढ़े हनुमान चालीसा।

होय सिद्धि साखी गौरीसा॥

अर्थ:

जो भी व्यक्ति इस हनुमान चालीसा का पाठ करता है, उसे सभी सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं, इसके साक्षी भगवान शंकर हैं।


40. तुलसीदास सदा हरि चेरा।

कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥

अर्थ:

तुलसीदास सदा ही श्रीराम का दास है। हे प्रभु! मेरे हृदय में निवास करें।


दोहा:


पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।

राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप॥

अर्थ:

हे पवनपुत्र! आप सभी संकटों का नाश करने वाले और मंगल स्वरूप हैं। श्रीराम, लक्ष्मण और सीता के साथ आप मेरे हृदय में वास करें।


हनुमान चालीसा का पाठ करने से भगवान हनुमान की कृपा प्राप्त होती है, और भक्तों के सभी प्रकार के भय, रोग, और संकट दूर होते हैं।