Saturday, September 16, 2023

बाबा बैजनाथ धाम की कथा ( Story of Baijnath Mahadev)

 Please read the English version of the story after the Hindi story below



भगवान शिव के भक्त रावण और बाबा बैजनाथ की कहानी बड़ी निराली है. पौराणिक कथा के अनुसार दशानन रावण भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए हिमालय पर तप कर रहा था. वह एक-एक करके अपने सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा रहा था. 9 सिर चढ़ाने के बाद जब रावण 10वां सिर काटने वाला था तो भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर उसे दर्शन दिए और उससे वर मांगने को कहा.


तब रावण ने 'कामना लिंग' को ही लंका ले जाने का वरदान मांग लिया. रावण के पास सोने की लंका के अलावा तीनों लोकों में शासन करने की शक्ति तो थी ही साथ ही उसने कई देवता, यक्ष और गंधर्वो को कैद कर के भी लंका में रखा हुआ था. इस वजह से रावण ने ये इच्छा जताई कि भगवान शिव कैलाश को छोड़ लंका में रहें. महादेव ने उसकी इस मनोकामना को पूरा तो किया पर साथ ही एक शर्त भी रखी. उन्होंने कहा कि अगर तुमने शिवलिंग को रास्ते में कही भी रखा तो मैं फिर वहीं रह जाऊंगा और नहीं उठूंगा. रावण ने शर्त मान ली.


इधर भगवान शिव की कैलाश छोड़ने की बात सुनते ही सभी देवता चिंतित हो गए. इस समस्या के समाधान के लिए सभी भगवान विष्णु के पास गए. तब श्री हरि ने लीला रची. भगवान विष्णु ने वरुण देव को आचमन के जरिए रावण के पेट में घुसने को कहा. इसलिए जब रावण आचमन करके शिवलिंग को लेकर श्रीलंका की ओर चला तो देवघर के पास उसे लघुशंका लगी.


ऐसे में रावण एक ग्वाले को शिवलिंग देकर लघुशंका करने चला गया. कहते हैं उस बैजू नाम के ग्वाले के रूप में भगवान विष्णु थे. इस वहज से भी यह तीर्थ स्थान बैजनाथ धाम और रावणेश्वर धाम दोनों नामों से विख्यात है. पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक रावण कई घंटो तक लघुशंका करता रहा जो आज भी एक तालाब के रूप में देवघर में है. इधर बैजू ने शिवलिंग धरती पर रखकर को स्थापित कर दिया.


जब रावण लौट कर आया तो लाख कोशिश के बाद भी शिवलिंग को उठा नहीं पाया. तब उसे भी भगवान की यह लीला समझ में आ गई और वह क्रोधित शिवलिंग पर अपना अंगूठा गढ़ाकर चला गया. उसके बाद ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की. शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की उसी स्थान पर स्थापना कर दी और शिव-स्तुति करके वापस स्वर्ग को चले गए. तभी से महादेव 'कामना लिंग' के रूप में देवघर में विराजते हैं.


Story of Baba Baijnath Dham:

 The story of Ravana and Baba Baijnath, devotees of Lord Shiva, is very unique. According to the legend, Dashanan Ravana was doing penance in the Himalayas to please Lord Shankar. He was cutting off his heads one by one and offering them on Shivalinga. After offering 9 heads, when Ravana was about to cut off the 10th head, Bholenath was pleased and appeared before him and asked him to ask for a boon.


 Then Ravana asked for a boon to take 'Kamana Linga' to Lanka. Apart from the golden Lanka, Ravana not only had the power to rule all the three worlds, he also imprisoned many gods, Yakshas and Gandharvas and kept them in Lanka. For this reason, Ravana expressed his wish that Lord Shiva should leave Kailash and live in Lanka. Mahadev fulfilled his wish but also kept a condition. He said that if you keep Shivalinga anywhere on the road, I will remain there again and will not get up. Ravana accepted the condition.


 Here all the gods became worried after hearing about Lord Shiva leaving Kailash. To solve this problem everyone went to Lord Vishnu. Then Shri Hari created a leela. Lord Vishnu asked Varun Dev to enter Ravana's stomach through Aachman. Therefore, when Ravana went towards Sri Lanka with Shivling after achamana, he got a little suspicious near Deoghar.


 In such a situation, Ravana gave Shivlinga to a cowherd and went to make a short stay. It is said that Lord Vishnu was in the form of a cowherd named Baiju. For this reason also this pilgrimage place is famous by both the names Baijnath Dham and Ravaneshwar Dham. According to mythological texts, Ravana kept doing urination for many hours which is still there in Deoghar in the form of a pond. Here Baiju installed the Shivalinga by placing it on the ground.


 When Ravana returned, he could not lift the Shivling despite many efforts. Then he also understood this play of God and he left after rubbing his thumb on the angry Shivalinga. After that gods like Brahma, Vishnu etc. came and worshiped that Shivalinga and established the Shivalinga at the same place and after praising Shiva, they went back to heaven. Since then Mahadev resides in Deoghar in the form of 'Kamna Linga'.

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